गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 7
अम्ब त्वाम् अनुसन्दधामि। गीता माता - अम्ब - वर्णमयी। अम्ब शब्द का अर्थ है शब्दमयी-वर्णमयी, वाङ्मयी माँ, त्वाम् अनुसन्दधामि - तुम्हारा अनुसन्धान करती हूँ। माँ का अनुसन्धान क्या है? जैसे बच्चा माँ का दूध पीता है, वैसे गीता माँ का जो दूध है - गोपाल के द्वारा दुहा हुआ, अर्जुन बछड़े ने जिसका पान किया - यही माँ का अनुसन्धान है। ‘अविकम्प योग’ विभूति योग की जगह स्वयं भगवान ने दसवें अध्याय को ‘अविकम्प योग’ नाम दिया है। एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः। ऐसा योग जो सुषुप्ति में भी रहे। स्वप्न में रहे, जगत में भी रहे, समाधि में भी रहे। ऐसा योग हो। पेड़-पौधा देखते समय भी रहे, पति-पत्नी में प्रेम करने के समय भी रहे; घर का काम करते समय भी रहे। बालकों से हँसते-खेलते भी रहे। इस अविकम्प योग की विचितरता यह है कि वह व्यवहार में भी रहता है, और समाधि में भी रहता है। अविकम्प योग वह है, जो शान्ति में भी रहे और विक्षेप में भी रहे। कभी विकम्पित न हो। एक सरीखा योग। एक भक्त है, रोता है भगवान के लिए। तब भी भगवान से योग है, और हँसता है भगवान को देखकर तब भी भगवान से योग है, क्योंकि उसका चितत भगवान के साथ लगा हुआ है। भगवान ज्ञान है, भगवान प्रेम है। आप चाहे घड़ा देखो, चाहे कपड़ा, चाहे मेज देखो चाहे कुरसी - ज्ञान आपको छोड़कर कहीं गया? यह बात दूसरी है कि सूर्य की रोशनी किस चीज पर पड़ रही है, पर सूर्य की रोशनी तो रोशनी ही है। ज्ञान तो ज्ञान है। वह चाहे मेज-कुर्सी देखे, चाहे मन्दिर में मूर्ति देखे। मूर्ति अलग है और कुर्सी-मेज अलग है, परन्तु ज्ञान तो वही है, जो आपके भीतर से, आँख के झरोखे से झाँक रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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