गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 4
वक्ता संक्षेप में बोलना चाहता है, श्रोता विस्तार से सुनना चाहता है। इससे श्रवण में जो रुचि है, वह प्रकट होती है। ‘विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन। भूयः कथय।’ फिर से कहो और विस्तार से कहो। इससे श्रवण में श्रद्धा, श्रवण में रुचि प्रकट होती है। श्रोता का यह विशेष गुण है। यदि वह कह दे बहुत लम्बा मत करो - अरे, तुमने तो दुहरा दिया - बारबार वही बात बोलते हो। उससे श्रोता की अश्रद्धा और अरुचि प्रकट होती है। श्रोता में तीन गुण होने चाहिए। एक तो वह श्रद्धालु हो, दूसरे चित्त एकाग्र हो और तीसरे मननशील हो। श्रवण के तीन अंग हैं। यदि सुनकर विचार न करे तो बैलने जैसे भूसा खा लिया, वैसे खा लिया उसने। वस्तुतः श्रवण ही मुख्य साधन है, ज्ञान-प्राप्ति का साधन है। सामने दीखती हुई चीज भी अगर बतायी न जाय कि वह क्या है तो उसका ज्ञान नहीं होता। लाल, काला, पीला आँख से जान सकते हो और परोक्ष जो वस्तु है वह कैसे ज्ञात हो? जैसे पूरब का आदि कहाँ है? पश्चिम का अन्त कहाँ है? यदि इसकी कल्पना करने लगो तब भी तुम्हें मालूम नहीं पड़ सकता। हमारे जीवन का प्रारम्भ कहाँ से और अन्त कहाँ है? आँख बन्द करके चाहे कितनी भी कल्पना करो, न इसका आदि-अन्त कभी मिला है, न मिलेगा। और खुली आँख से देखो तो जहाँ तुम बैठे हो, वहीं से पूर्व-पश्चिम प्रारम्भ होता है और वहीं पूर्व-पश्चिम का अन्त है। जहाँ-जहाँ तुम रहोगे वहाँ पश्चिम आदि भी रहेगी और अन्त भी रहेगा। ऐसे जीवन का आदि और जीवन का अन्त यदि ढूँढ़ने जाओ तो ढूँढ़े नहीं मिलेगा। जहाँ तुम हो, वहीं आकृतियों के बीज का आदि भी है और अन्त भी है। आत्मज्ञान से जन्म-मरण की निवृत्ति हो जाती है और आकृतियों का आदि अन्त ढूँढ़ने से अज्ञान ही मिलता है। अब आओ मनन करें। मनन उत्पत्ति के द्वारा भी होता है और उपपत्ति के द्वारा भी होता है। किससे क्या चीज बनती है आप प्रयोगशाला में देखेंगे। हम लोगों की प्रयोगशाला हमारे साथ रहती है। शान्त बैठे। फिर हलचल हुई। गरमी हुई। पसीना आया। फिर माटी हो गयी। माटी के मूल में पसीना-पसीने के मूल में गरमी, गरमी के मूल में हलचल और हलचल के मूल में शान्ति। यह है सृष्टि की उत्पत्ति का मनन। पहले गाढ़ सुषुप्ति। फिर नींद टूटी, होश आया, इसी प्रकार परा प्रकृति और बुद्धि का जागरण - फिर मैं कौन हूँ - कहाँ हूँ? देश, काल, वस्तु का युक्ति के द्वारा, उपपत्ति के द्वारा, मनन किया जाता है। सारी वस्तुएँ अपने अभाव में ही दीखती हैं। दोनों उँगली दीखती है, जब दोनों उँगली के बीच में उनका अभाव है। शब्द, अक्षर तब सुनाई पड़ते हैं जब एक के बाद दूसरे अक्षर के उच्चारण में थोड़ा अवकाश हो। कोई भी वस्तु अपने अभाव से ही दिखायी पड़ती है। इसलिए अपने आत्मा को जानने के लिए योग करना पड़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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