गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 1
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रविस्तारै: । गीता में चार मुख्य व्यक्ति सामने आते हैं, उभरते हैं - उनमें सबसे पहले धृतराष्ट्र हैं। धृतराष्ट्र अन्धे हैं, ममता से ग्रस्त हैं। अज्ञान, अविवेक फिर ममता। दस दिन का युद्ध हो जाने पर और भीष्म पितामह का पतन हो जाने पर, शरशय्या पर गिरने के बाद धृतराष्ट्र ने सन्जय से यह प्रश्न किया कि, धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में, युद्ध की इच्छा से एकत्र मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया? दस दिन के युद्ध होने के पश्चात् प्रश्न हुआ - युद्ध के प्रारम्भ का। तब सन्जय के मन में यह बात आयी कि ये दस दिन युद्ध सुन चुके हैं, फिर पूछते हैं कि युद्ध के प्रारम्भ में क्या हुआ? इस प्रश्न का आशय सीधा-साधा नहीं होना चाहिए। कोई गूढ़ आशय होना चाहिए। इसका अर्थ है, वहाँ कोई विशेष घटना घटित हुई क्या? सामान्य युद्ध के अतिरिक्त वहाँ और कौन-सी विशेष बात हुई? ऐसा धृतराष्ट्र का प्रश्न है। नहीं तो, पूछे कोई युद्ध-भूमि में क्या हुआ और कही जाय गीता - पूछे कुछ और जवाब दे कुछ! ऐसा तो नहीं होना चाहिए। तो संजय की बुद्धि में आया कि धृतराष्ट्र कोई विशेष प्रश्न कर रहे हैं। इसका उत्तर देना चाहिए। धृतराष्ट्र की संसार की पकड़ मजबूत है - ‘धृतं राष्ट्रं येन यः।’ विश्व मानवता को छोड़कर केवल एक सीमित परिवार में आसक्त रहकर विवेकशून्य, ममतापूर्ण हृदय से यह प्रश्न निकला - विशेष क्या हुआ? तो इसका ऐसा उत्तर देना चाहिए, जिससे इनका अविवेक नष्ट हो, अज्ञान नष्ट हो, ममता कम हो, उनके मन में सुख-शान्ति आये और सच्चे ज्ञान का उदय हो। करुणापूर्ण हृदय से संजय ने धृतराष्ट्र को गीता सुनायी। संजय का अर्थ है, जिसने अपने मन पर इन्द्रियों पर, दोषों पर, अज्ञान पर जय प्राप्त कर ली हो ‘सम्यक् जयति।’ संजय जीवन्मुक्म पुरुष हैं। अज्ञानी धृतराष्ट्र - जीव, और जीवन्मुक्त पुरुष हैं संजय। और कर्मी - ‘धनुरुद्यम्य पाण्डवः’ धनुष-बाण हाथ में लेकर उपस्थित हैं अर्जुन। और सारथि जिनके सान्निध्य से, जिनकी सहायता से सब कुछ होता है, वे सारथि के रूप में सहायक के रूप में अपने सान्निध्य मात्र से प्रेरणा देने वाले के रूप में - ‘श्रीकृष्ण।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीष्म पर्व 43.1
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