गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 4
अर्जुन विश्वरूप का दर्शन कर रहे हैं। विश्वरूप का दर्शन भगवत्-कृपापात्र मनुष्य को ही होता है। कौरवों की सभा में भगवान ने जब विश्वरूप प्रकट किया तो भीष्म, द्रोण, कृप और दूसरे जो वहाँ कुछ महापुरुष थे, वही देख सके। धृतराष्ट्र को तो भगवान ने देखने के लिए आँख दी, तब देख सके। जो संसार की छोटी-छोटी वस्तुओं को पकड़कर बैठा है उसको महान का दर्शन नहीं होगा। हमारा मन, हमारा नेत्र अगर छोटी-छोटी वस्तुओं को ही पकड़कर बैठा रहेगा तो जो भगवान का महान विश्वरूप है उसका दर्शन कहाँ से होगा? अर्जुन को भूल गया अपना शरीर, भूल गया अपना परिवार और दीखने लगे भगवान। अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यूमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.19-24
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