गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-13 : अध्याय 16
प्रवचन : 1
श्रीश्रीमती भगवती गीता, उपनिषद्रूप है। अनेक उपनिषदों का समूह है। यहाँ तक कि विद्वानों ने प्रकरण को उपनिषद के रूप में नहीं, एक-एक श्लोक को भी उपनिषद के रूप में बताया है। यह उपनिषद है। उपनिषद में वस्तु का निरूपण होता है। कुछ धर्म का, कुछ उपासना का, कुछ ज्ञान का - सीधा-सादा निरूपण होता है। परन्तु गीता के रूप में उसको मधुर बना दिया गया। यह गीता उपनिषद है, संगीतमय उपनिषद है। इसमें एक माधुर्य है, इसमें एक सौरस्य है, इसमें एक सौरभ्य है, इसमें एक सौकुमार्य है, इसमें एक सस्वर्य है, संगीत है, लोगों को आकर्षित करने वाली, लोगों के कान-कान में प्रवेश करने वाली है। उपनिषदें सबके कान में नहीं जा सकती थीं। गीता पशु-पक्षी के कान को भी पवित्र करने वाली है। पेड़-पौधे भी गीता को सुनकर आनन्द लेते हैं। गीत है, गीत भी है तो किसका? बालते हैं न कि यह अमुक घराने के संगीतज्ञ हैं, बहुत अच्छा संगीत गाते हैं। तो यह भगवद-गीता है। इस संगीत के गायक वही बाँसुरी वाले मनमोहन, गोपीजनबल्लभ, श्यामसुन्दर हैं। जो विषाद के अवसर पर भी एक दिव्य संगीत गाते हैं और अर्जुन के हृदय को अपने सम्मुख करके उसको अपने हृदय का दान करते हैं। ‘गीता में हृदयं पार्थ’ यह मंडप सजा करके विवाह की रीति से हृदय-दान नहीं हुआ है, युद्धभूमि में, जहाँ युद्ध के शंख बज रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, हाथी चिग्घाड़ रहे हैं - ‘प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते’ वहाँ यह मधुर-मधुर संगीत प्रकट हुआ है। एक मित्र रोता है, एक मित्र गाता है, क्या आश्चर्य है? जहाँ गाने का अवसर है, वहाँ अर्जुन तू रो रहा है? पहला उपदेश है, अर्जुन! मुझे तो यह वातावरण देखकर, परिस्थिति देखकर, संगीत आ रहा है मेरे भीतर से, और तू रो रहा है? हाँ मित्र। एक मित्र, जिसको भयंकर परिस्थिति समझ रहा है, समस्या से भरपूर, संघर्षमयी, वहीं दूसरा मित्र है जो उसको उस परिस्थिति के बोझ से सर्वथा मुक्त करके ‘प्रहसन्निव भारत’ - जोर से हँसकर-ठठाकर के उस परिस्थिति का समाधान करता है। सह सम्वाद है। वेद भगवान की आज्ञा है कि हे मनुष्यों, तुम एक स्वर में बोलो संवदध्वं-संगच्छध्वं-सं वो मनांसि जानताम्-मेरे प्यारे मनुष्यों! कदम से कदम मिलाकर चलो। संगच्छध्वं-तुम्हारी गति सम्वादी हो। एक पाँव इधर, एक पाँव उधर पड़ रहे हों, ऐसे नहीं। संगच्छध्वं-मिलकर चलो! मिलकर बोलो - संवदध्वम्। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज