गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 2
अर्जुन का प्रश्न यह था कि सगुण साकार विराट रूप के जो उपासक हैं वे योगवित्तम हैं अथवा जो अक्षर अव्यक्त के उपासक हैं वे योगवित्तम हैं? योगत्तिम माने परमात्मा की प्राप्ति के उपास को जानने वालों में सर्वश्रेष्ठ। योग माने उपाय और वित माने ज्ञान और तम माने श्रेष्ठतम। यदि सगुण की उपासना न करके पहले निर्गुण की ही उपासना की जाय तो वह बहुत कठिन पड़ती है। पहले सगुण की उपासना हो जाय तो निर्गुण उपासना सुगम हो जाती है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा-
निर्गुण और सगुण में भेद क्या है? निर्गुण चुपचाप अचल बैठा रहता है, वह किसी को अपनी ओर खींचता नहीं है, जिसको सब कुछ छोड़कर उससे मिलना हो वह उससे जाकर मिले। और सगुण वह है जो अपेन गुण प्रकट कर दे। फन्दा फेंककर, डोरा डालकर, हँसकर, गाकर, नाचकर, सम्बन्ध जोड़कर अपनी ओर खींच ले-इसको सगुण बोलते हैं। जो अपनी ओर भक्तों को खींचता है। निर्गुण उपासक वे हैं जो नामरूप क्रियात्मक प्रपंच से विरक्त होकर और उसकी जिज्ञासा, जानकारी प्राप्त करने के लिए महात्माओं के पास जाते हैं। वेद का श्रवण करते हैं, मनन करते हैं, अपने आप आवरण-भंग करके, परदा फाड़कर परमात्मा से एक हो जाते हैं। सुगमता की दृष्टि से सगुण की जो उपासना है वह श्रेष्ठ है। यह कहो कि भगवान दो हैं तो असल में भगवान दो तो हैं नहीं, ईश्वर तो एक ही होता है, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने यह कहा-अपने मन को मुझमें आविष्ट कर दो। जैसे क्रोध आने पर तुम क्रोध में आविष्ट हो जाते हो, काम आने पर काम में आविष्ट हो जाते हो, जैसे लोभ आने पर लोभी में अविष्ट हो जाते हो। इन दृष्टान्तों को आप छोटी किस्मका न समझें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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