गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-13 : अध्याय 16
प्रवचन : 5
जिसको देखने के लिए दूसरी रोशनी की, दूसरे प्रकाश की आवश्यकता होती है, वह परमेश्वर नहीं है। परमेश्वर वह है जिसको देखने के लिए, दूसरे प्रकाश की, दूसरे रोशनी की आवश्यकता नहीं होती है। दुनिया में जितनी चीजें दिखती हैं, उनको देखने के लिए आँख की जरूरत होती है और मन की जरूरत होती है और आँख और मने से दीखने वाली वस्तु न हो तो उसको देखने के लिए वाणी की आवश्यकता होती है। बोलकर उसको समझाया जाता है। माने किसी भी प्रमाण के द्वारा, परमात्मा-घड़े, कपड़े, मेज, कुर्सी की तरह नहीं देखा जाता। बल्कि उसी की रोशनी में, उसीके प्रकाश में सबकुछ दिखायी पड़ता है। न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं वेद भगवान कहते हैं कि वहाँ सूर्य प्रकाशित नहीं होता है, न चन्द्रमा, न तारे। वहाँ बिजली भी नहीं चमकती है, इस अग्नि की तो पहुँच वहाँ होगी ही कैसे? उसी प्रकाश में सब प्रकाशित होता है। ‘तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।’ जो कुछ दीख रहा है, उसी की रोशनी से रोशन हो रहा है। हम चाहत हैं कि सूर्य की रोशनी में या चन्द्रमा की रोशनी में या अग्नि की रोशनी में परमेश्वर को देखें। यहाँ बताना यह चाहते हैं कि परमात्मा सर्वान्तर है। जो वस्तु आँख से देखी जाती है और जो वस्तु मन से देखी जाती है, वह चन्द्रमा की रोशनी में देखी जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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