गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 3
अधियज्ञोऽहमेवात्र - भगवान कहते हैं कि मैं इस देह में अधियज्ञ रूप से रहता हूँ। कितने आनन्द की बात है। भगवान इसी शरीर में रहते हैं। जिसमें मैं, उसी में भगवान। एक मकान में दोनों, एक कमरे में दोनों, एक पलंग पर दोनों। यह कितना सुगम है कि भगवान हमसे दूर नहीं हैं। हम वे एक साथ रहते हैं। निर्गुण भगवान को प्राप्त करना हो तब तो ‘यह नहीं’, ‘यह नहीं’, ‘यह नहीं’ - ऐसे निषेध करना पड़ता है और जो बच जाता है वह भगवान होता है। निषेधशेषो जयतादवशेषः - सबका निषेध करने पर जो शेष रह जाता है वही अशेषात्मा भगवान है। सगुण भगवान के लिए निषेध करने की आवश्यकता नहीं होती। यह भी भगवान वह भी भगवान। निर्गुण भी वही, सगुण भी वही, आत्मा भी वही, हृदय भी वही, देवता भी वही। निर्गुण भगवान सबका निषेध करने के बाद अपने आपके रूप में अनुभवस्वरूप है और सगुण भगवान जो दिखता है सबमें, सब जगह वह है। वेदान्त दृष्टिप्रधान होता है और भक्ति भावप्रधान होती है। दृष्टि जैसी वस्तु होती है वैसी ही होती है और भाव हम जैसा करना चाहते हैं, वैसा होता है। दोनों में अन्तर होता है। दृष्टि वस्तु तन्त्र होती है, यह भाव कर्तृतन्त्र होता है। ये दोनों पारिभाषिक शब्द हैं। कर्ता के अधीन है भाव और जैसी वस्तु है उसके अनुसार है दृष्टि। जहाँ हम ‘वासुदेवः सर्वम्’ - सब वासुदेव ऐसा कहते हैं वहाँ दिखता तो है पेड़, परन्तु उसमें भाव करते हैं वासुदेव का। वेदान्ती कहते हें कि सब तो अनेक हैं। सब माने हम सब लोग स्त्री-पुरुष, कुमार-कुमारी आदि। ये सब दीखते तो अलग-अलग हैं किन्तु इनको बताते हैं - ‘वासुदेव’। अब या तो भाव करो कि सब वासुदेव है या इनमें अलगाव है। निषेध करने पर जो शेष रहता है, उसको ‘वासुदेव’ मानो। ये दो प्रक्रियाएँ हैं। जब हम ‘वासुदेवः सर्वम्’ बोलते हैं तब वासुदेव एक है और सब अनेक हैं। वासुदेव, परमात्मा एक है और उसको बोल रहे हैं सब। सब माने बहुतों का जोड़ जैसे वे-वे-वे, ये-ये-ये। मैं-मैं-मैं नहीं, क्योंकि मैं का बहुवचन नहीं होता। मैं-मैं-मैं ऐसा अनुभव तो कभी किसी को होता ही नहीं। ये-ये-ये अथवा वे-वे-वे अनुभव होता है। इसलिए मैं का बहुवचन वैयाकरणों की अभीष्ट नहीं है। व्याकरण के नियमानुसार - जब दो बोलना होगा तो बोलेंगे ‘आवाम्’। इसमें अहं का तो लोप ही हो गया। इसी प्रकार ‘वयं’ में भी अहं नहीं है। अहं का लोप करके ही हम ‘अवाम्’, ‘वयं’ बोलते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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