गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-11 : अध्याय 14
प्रवचन : 6
गर्भाधान के दिन से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया पर्यन्त और उसके बाद भी धर्म संस्कार किये जाते हैं। उपनिषदों का कहना है कि जब रोग आता है तो वह भी एक तप है। उसको सहना चाहिए। फिर कल्पना ऐसी होती है कि लोग श्मशान में ले जा रहे हैं- बोले, मेरा वन-गमन हो रहा है। और जब अग्नि में जलाते हैं, अन्त्येष्टि क्रिया करते हैं। अन्त्यः इष्टि है=अन्त्येष्टि। इष्टिमाने यज्ञ। अपने शरीर का हवन किया जाता है। इस प्रकार वैदिक धर्म के अनुसार अन्त्येष्टि संस्कार भी एक संस्कार है और वह यज्ञ-रूप है। ऐसा अपने समग्र जीवन कोे धर्म के रूप में बना देना यह वैदिक संस्कार की विशेषता है। आज प्रियदर्शिनी इन्दिरा गांधी-प्रधानमंत्री की अन्त्येष्टि क्रिया है। यह बहुत बड़ी आहुति है देश की ओर से। इससे भी धर्म सम्पन्न होता है, अन्तःकरण शुद्धि होती है। भगवत-प्रसाद होता है। इसलिए इसके उपलक्ष्य में आज हम सब लोग खड़े होकर एक मिनट का मन का मौन या मन-ही-मन भगवान से प्रार्थना करें कि जिससे विश्व मानवता का मंगल हो, राष्ट्र का हित हो, लोगों के मन में सद्भाव और शान्ति का उदय हो ऐसा संकल्प करके एक मिनट के लिए खड़े हो जायँ और मौन रहें- प्रश्न: अद्भुत प्रक्रिया है सृष्टि की बड़े-से-बड़ा आघात पाकर भी क्रम चलता रहता है। शायद प्रभु की इच्छा क्रम चलाते रहने की ही है और संकट के क्षणों में वह हमारी परीक्षा भी लेता है कि हम कितने धैर्य के साथ यही क्रम चला सकते हैं। हमलोगों का गीता-ज्ञान-यज्ञ जो चल रहा है उसके प्रश्न क्रम में आज जो प्रश्न है वह मैं पूज्य गुरुजी के सामने उपस्थित कर रहा हूँ- ज्ञेय के रूप में ब्रह्म का निरूपण है, वह सगुण साकार, निर्गुण-निराकार दोनों का ही मालूम पड़ता है- और परस्पर विरोधी गुणों से भरा है। इस वर्णन में संगति किस प्रकार बिठायें? उत्तर: परमात्मा में दृष्टि-भेद के कारण भेद जान पड़ते हैं। कोई किसी कोण से देखता है, कोई किसी कोण से। हमने चित्र लेते देखा है। ऊपर से लेते हैं तो आदमी नाटा हो जाता है। नीचे से लेते हैं तो लम्बा हो जाता है। दाहिनी ओर से लेते हैं तो दूसरा बायीं ओर से लेते है। तो दूसरा। यह मनुष्य भेद नहीं होता है, जो चित्र लिया जाता है, उस कैमरे के कोण में भेद होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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