गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-4 : अध्याय 7
प्रवचन : 1
अम्ब त्वामनुसन्दधामि भगवद्गीते भवद्वेषिणीम्। अम्ब त्वामनुसन्दधामि अर्थात् हे अम्ब, हे माँ, मैं तुम्हारा अनुसन्धान करता हूँ। ‘अम्ब’ शब्द का संस्कृत में अर्थ है- वर्णात्मिका। ‘अब्’ शब्दे धातु से अम्ब शब्द बनता है। अम्बा वह है जो बोलना सिखाती है। सरस्वती माँ है इसीसे हम उसको अम्बा कहते हैं- वाग्देवी। अधिदैविक दृष्टिसे वाग्देवी सरस्वती है; आध्यात्मिक दृष्टि से वाग्देवी वाक् है। यह गीता क्या है? भगवान् की वाणी- साक्षात्, सरस्वती अपने हृदय के भाव दूसरे हृदय तक पहुँचने वाली- ज्ञान का प्रवाह। तो आइये, अर्जुन के रथ पर सारथि के रूप में विराजमान भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन करें। उपनिषद् का कहना है कि हमारे जीवन में एक सारथि चाहिए - हमारे जीवन में एक बागडोर चाहिए।
जिसके जीवन-रथ का सारथि विज्ञान है और जिसके मन की बागडोर अपने हाथ में है, वह मार्ग से पार हो जाता है, अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है। वहाँ से फिर राग-द्वेष के संसार में उतरना नहीं होता। यह संसार क्या है? बस, राग और द्वेष- किसी से राग होता है तो किसी से द्वेष। यह राग-द्वेष ही संसार है। स्वर्ग-नरक इसी से बनते हैं। अपने जीवन में जब वि़ज्ञान सारथि होता है मन की लगाम अपने हाथ में होती है तब कहीं भटकने का डर रहता। इसी से उपनिषद् में बताया गया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कठ० 1.3.9
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