गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 8
अम्ब त्वां अनुसन्दधामि भगवद्गीते भवद्विेषिणीम्। ब्रह्माजी की भी एक आय होती है। उनकी कुरसी भी एक दिन उलट जाती है। काल का चक्र बड़ा प्रबल है। इसमें रहकर कोई अजर, अमर, अविनाशी नहीं हो सकता। भगवान श्रीकृष्ण करुणा की मूर्ति हैं, वात्सल्य और स्नेह के स्वरूप हैं। वे इस जीवात्मा को काल-चक्र से ऊपर उठाना चाहते हैं। काल के चक्कर में मत पड़ें। प्राचीन ग्रन्थों में सात दिनों का कोई वर्णन नहीं आया है। बहुत प्राचीन ग्रन्थों में - हजार दो हजार वर्षों के अन्दर ही यह सात दिन की कल्पना हुई है। परन्तु अर्गण पहले से ही है। एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन फिर एक महीना, छः महीना, एक वर्ष - काल की गणना ऐसे की गयी है। ब्रह्माजी की भी एक आयु होती है। जैसे हमारी एक चतुर्युगी होती है, आप जानते हैं - चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का कलियुग होता है। इसका दुगुना द्वापर होता है। कलियुग का तिगुना त्रेता और चैगुना सत्ययुग होता है। यह कालचक्र का हिसाब है। ब्रह्मा का एक दिन - आप चौदह घण्टे का मान लें। एकहत्तर चतुर्युगी उसमें होती है। चौदह घण्टे का ब्रह्मा का एक दिन और एकहत्तर मिनट का एक घण्टा। एक चतुर्युीगी-मिनट - एक मिनट में हम लोगों का चोवालीस लाख वर्ष से ज्यादा। यह तो उनका एक मिनट है। इकहत्तर मिनट का एक घण्टा मानें तो उसमें इकहत्तर बार यह चतुर्युगी, और सन्ध्या सहित एक सहस्र चतुर्युगी - इस हिसाब से उनका महीना। महीने के हिसाब से संवत्सर। संवत्सर के हिसाब से वर्ष, और सौ वर्ष ब्रह्मा की आयु है। तो इस प्रकार वह भी काल के चक्र में हैं। पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है, ब्रह्माजी का विष्णु के एक क्षण में सौ वर्ष होता है। विष्णु के क्षण के हिसाब से उनका दिन उनका महीना, उनका वर्ष। ब्रह्माण्ड का जब क्षय होता है तब विष्णु, विष्णु के रूप में नहीं रहते। वे निराकार परमेश्वर में मिल जाते हैं। पर ऐसा जो विष्णु का सौ वर्ष है वह शंकरजी की एक क्षण मात्र है। संहार के देवता तो वे ही हैं। फिर उनका दिन, उनका महीना, उनका वर्ष। शंकर का सौ वर्ष, निराकार परमेश्वर का एक संकल्प है और वह निराकार ईश्वर का जो संकल्प है, वह निर्गुण, निराकार, परब्रह्म परमात्मा की कल्पना मात्र है। वास्तविक नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज