गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 10
भगवान ने कहा कि जो जिसकी आराधना करता है, वह उसी को प्राप्त करता है और इसी न्याय से अपना भी वर्णन कर दिया, जैसे देवाराधन करने वाला देवता को प्राप्त होता है, वैसे ही मेरी आराधना करने वाला मुझे प्राप्त होता है। न्यायतः संगत है परन्तु दोनों में बड़ा अन्तर है। देवता लोग तो पूजा की सामग्री देखते हैं कि हमारी पूजा-पत्री में यह क्या लगा रहा है। जैसे देवता से हम पाँच लाख चाहते हैं और पाँच रुपये का लड्डू का भोग लगा देते हैं। तो वह हिसाब-किताब देखता है। देवाताओं को गणित, व्यापार मालूम है। उनको वेद-मन्त्र का उच्चारण चाहिए। उनको विधि-विधान चाहिए और वे पूजा तो पहले ले लेते हैं और उसका फल कभी, अपनी मौज से देते हैं। न्याय यही है कि जो भगवान की आराधना करे वह भगवान को प्राप्त हो। क्या यही बात भगवान के बारे में भी सोची जाय? उन्होंने देवताओं से अपनी विलक्षणता बतायी। देवता अमर हैं - अमीर लोग उनकी उपासना करते हैं। अमर हैं, अमीर हैं, उमराव हैं। अमेरिका अमीरों का निवास स्थान है। भगवान गरीबों के लिए हैं। अमीरों के ही भगवान नहीं है, भगवान गरीबों के भी हैं। जिनके पास कोई सामग्री न हो वे क्या करें? देखो गरीबों की सेवा स्वीकार करने के लिए - ‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं।’ ‘यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्’ में थोड़ी आपत्ति आयी थी, जो आक्षेप आया था, उसका समाधान करने के लिए। इसको आक्षेपिकी संगति बोलते हैं। तुम भी देवताओं जैसे हो, ना-ना, मैं देवताओं जैसा नहीं हूँ। ‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।’ वस्तु की कीमत नहीं कीमत है भक्ति की। कितना प्रेम - ‘पत्रं’ एक तुलसी का पत्ता, ‘पुष्पं’ एक जंगल में-से तोड़ लाओ फूल। यदि कोई मालिक है, तो उसकी अनुमति लेकर ही फल, फूल, पत्ता चुनना चाहिए या कीमत देकर लेना चाहिए, स्वयं पैदा करना चाहिए। पर यदि कोई वन में फूल-फल लगा हो तो वहाँ से ले लेना चाहिए। क्योंकि वह तो भगवान का है। तो पत्र हो, फूल हो, फल हो और नहीं तो पानी तो बहता ही रहता है। अपने पीने के लिए मिलता है, तो भगवान को पिलाने के लिए क्या पानी नहीं मिलेगा? अब यह है कि भगवान सबके साथ अश्नामि शब्द का प्रयोग करते हैं। अश्नामि माने खाता हूँ। थोड़ा हो तो आप उसको नाश्ता बोलते हैं। ‘नाशितं’ - अशितं पूर्णं न भवति।’ यह पूरा भोजन नहीं है अधूरा भोजन है। परन्तु भगवान कहते हैं कि मैं भोजन करता हूँ। यह प्रेम से दे रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज