गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-13 : अध्याय 16
प्रवचन : 10
जब गाय से दूध दूहते हैं तो बछड़े को तो निमित्त बनाया जाता है, चाहे गाय के आगे खड़ा कर दे, चाहे गाये के पाँव में बाँध दे और दूध जो गाय का दुहा जाता है, वह बछडे़ के काम तो कम आता है। दूसरे लोग ही उसको खाते-पीते हैं। उपनिषद् हैं गाय और उनके शरीर में ज्ञानामृत, ज्ञान का दूध भरा हुआ है। पर उस दूध को दुहकर निकालने वाला कोई गोपालनन्दन चाहिए। वह भी बुढ्ढा नहीं है, जवान है। ‘दोग्धा गोपालनन्दनः’। निमित्त है अर्जुन और कोई भी सुधी उसका पान कर सकता है। यह दूध उदार है। ‘दुग्धं गीतामृतं महत’ महत का अर्थ है कि यह सब प्राणियों के लिए है। बल्कि माहात्म्य में तो यहाँ तक कहाँ जाता है कि जिन पेड़-पौधों ने भी गीता का श्रवण कर लिया उनका पेड़-पौधों की योनि से योनि से उद्धार हो गया। जिन पशु-पक्षियों ने भी गीता का श्रवण किया, उनका उद्धार हो गया। आप अठारहों अध्याय का माहात्म्य अलग-अलग पढ़ें तो देखेंगे कि किस अध्याय के पाठ का क्या माहात्म्य है! ऐसी यह गीता भगवद् वाणी है। भगवद् वाणी का अर्थ होता है कि जैसे पिता जो कुछ कहता है, अपने सब पुत्रों की भलाई ध्यान में रखकर बोलता है। माता के हृदय में, पिता के हृदय में, पक्षपात नही होता है। वह अपने सभी सन्तानों का कल्याण चाहते हैं। इसी प्रकार यह गीता ‘दुग्धं गीतामृतं महत’। महत का अर्थ है, परम उदार है। सर्वका कल्याण करने वाली है। भूमि को दिव्य बनाने वाली है। पेड़-पौधे को कल्याण देने वाली है और इसका रसास्वादन तो सुधी लोग करते हैं। सुधी माने जिसकी बुद्धि बहुत सुन्दर है, सुष्ठ है। भगवान ने यह कहा कि वेद का असली रहस्य मैं जानता हूँ। ‘वेदविदेव चाहं। अहमेव च वेदवित’- मैं ही वेदवित-वेद का रहस्य जानने वाला हूँ। एक बात पर आप ध्यान दें। दुनिया में ऐसा कोई मजहब नहीं है जो अपनी बात कहने के बाद कह दे कि अब हमारी जरूरत नहीं है। अब तुम हमारे कानून के दायरे से बाहर हा गये हो। गीता का कहाना है कि यदि तुम इसको समझ लो तो वेद के विधि-निषेध हैं- वेद का जो घेरा है, उससे बाहर निकल जाते हो। त्रैगुण्यविषया वेदाः निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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