गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-13 : अध्याय 16
प्रवचन : 8
पंच भूतों को हम लोग देखते हैं। - पृथ्वी है, अग्नि है, जल है, वायू है, आकाश है। इनकी तन्मात्राओं से बनी इन्द्रियों के द्वारा इनका दर्शन होता है। असाधारण करण इन्द्रिय है और साधारण करण मन है। साधारण कारण का अर्थ है कि कोई भी देखो, सुनो सबमें मन तो रहता ही है। अब भगवान ने इनमें अपनी शक्ति बतायी। पृथ्वी में धारणी शक्ति है। वह सबको धारण करती है- गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा। यह धारणी शक्ति पृथ्वी की नहीं है, भगवान की है। यदि भगवान पृथ्वी में प्रविष्ट न हों तो पृथ्वी किसी को धारण नहीं कर सकती। यहाँ तक कि स्वयं भी धृत नहीं रह सकती। वेद में मन्त्र है, ‘ये न द्यौरुग्राः पृथ्वी च दृढ़ाः। ये न द्यौस्तति येन नाका। जिसके कारण पृथ्वी दृढ़ है वहीं रसात्मक सोम होकर जल में ‘रसोहमप्सु कौन्तेय’- माने जल में जो तर करने की, तृप्त करने की आप्ययनी, तर्पणी शक्ति है वह भगवान है। पृथ्वी में भगवान जल में भगवान। वैश्वानर-ये जितने भी विश्व में जीव हैं वे सब वैश्वानर हैं। विश्वनर वैश्वानर। उनमें जो तापिनी और प्रकाशिनी शक्ति है, उसमें सबमें ऊष्मा भी होती है और प्रकाश की भी शक्ति होती है। ‘तेजस तत्त्वव’ ठीक है, उसमें तापिनी होने के कारण भगवान ही पाचिनी शक्ति के रूप में भी है और प्रकाशिनी शक्ति के रूप में भी हैं। वही भगवान वायु में प्राणिनी शक्ति के रूप में हैं। सबको श्वास देते हैं, प्राण देते हैं। बिल किसी के पास नहीं भेजते हैं। म्युनिसपैलिटी रहने का हाउस बिल भी लेती है, पानी का बिल भी लेती है। रोशनी का बिजली बिल भी लेती है; पंखे का बिल भी लेती है। कोई लाउडस्पीकर लगावें, बोलें तब भी बिल होता है। परमेश्वर सारी शक्ति, सारी सृष्टि को देता है और सब में व्याप्त होकार के रह रहा है, आकाश में व्यापिनी शकित् है। धारिणी, आप्यायिनी, प्रकाशिनी, प्राणिनी और व्यापिनी, इन पाँच शक्तियों को लेकर के भगवान पाँचों भूतों में प्रवेश करते रहते हैं और हमें उन शक्तियों के द्वारा उपकृत करते रहते हैं, तृप्त करते रहते हैं, तर करते रहते हैं। दिन-रात चौबीस घण्टे। आपकी बुद्धि के भीतर बैठकर आपकी ठीक-ठीक नमक का अन्दाजा बताने वाला कौन है? ‘धियो यासे नः प्रचोदयात्।’ आपने गायत्री सुनी ही होगी। ‘धियो यो नः प्रचोदयात्’- जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करता है। प्रचोदयात् लोट् लकार का रूप नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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