गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 7
प्रश्न: बीसवें श्लोक में भगवान कहते हैं कि इन तीनों गुणों को लाँघकर ऊपर ऊठकर जाने वाला पुरुष सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है और ‘ अमृतमश्रुते’- कृपया इसका निरूपण करें। उत्तर: श्लोक है- गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान। इसके पहले- नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति। इसमें दो बात पर जोर दिया गया है। दो हैं साधन और एक उसका फल। साधन यह है कि आप गुणों को इन आँखो से नहीं देख सकते, इस बात को समझ लीजिये। न्याय वैशिषिक में जो गुण होते हैं, वे तो कोई प्रत्यक्ष होते हैं, कोई अनुमानित होते हैं। गीता में जिस सांख्ययोग के अनुसार गुणों का वर्णन हो रहा है, वे गुण स्थूल नहीं है कि हम इन्द्रियों के द्वारा उनको देख सकें कि यह सत्त्वगुण है, रजोगुण है, यह तमोगुण है।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज