गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 10
चिड़ियों की बोली का नाम व्याकरण है और उनकी जो आकृति है वह रूप-व्याकरण है। व्याकरण माने विशिष्ट आकृति का सम्पादन। ‘व्याकरणं’ उसमें मन्त्र की जरूरत नहीं है। अधिकारी की आवश्यकता नहीं है। क्रियाविशेष की ऐसी वेदी बनाओ और ऐसा स्थान हो और वसन्त में आग्न्याधान करो। यह सब कुछ नहीं। सारी क्रिया ही भगवान के प्रति अर्पित होने से धर्म हो जाती है। ‘यत्करोषि’ - यज्ञ में क्रियाविशेष है और भगवद्-समर्पण में क्रिया विशेष का समर्पण नहीं है। यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् । ‘यत्करोषि’ - भगवान सब कर्म की बात करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने (भगवान तो आदरवाचक शब्द है) श्रीमान् कृष्ण ने - श्रीमती भगवद् गीता (जैसे स्त्री के नाम के साथ श्रीमती जोड़ते हैं वैसे ही भगवान भी विशेषण शब्द है, कहीं-कहीं संज्ञा के अर्थ में प्रयोग होता है) ने क्या किया, मन्दिर में-से तो भगवान को निकाला और ‘सर्वभूतेषु मद्भावम्’ कर दिया। भगवान कहाँ है? सबमें हैं। सड़क पर हैं, घर में हैं, स्त्री में हैं, पुरुष में हैं। परमेश्वर को तो निकालकर सब में रख दिया और धर्म को यज्ञशाला में-से निकालकर - ‘यत्करोषि यदश्नासि लौकिकमपि’ - जो कुछ लौकिक कर्म करते हो, परिवार के लिए करते हो, धनार्जन के लिए करते हो - ‘यत्करोषि।’ और पहले से ख्याल नहीं है - यह भगवान के लिए है। करने के बाद ही बोल दिया ‘श्रीकृष्णार्पणमस्तु। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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