गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 1 यदि भारतीय संस्कृति को समझना हो तो ज्ञान किसी ने कभी बनाया है, यह बात भूल जाओ। किसी भी काल में, भूगोल के किसी भी देश में, सातवें आसमान में या धरती पर, किसी व्यक्ति विशेष द्वारा ज्ञान की उत्पत्ति की गयी है या ज्ञान उत्पन्न हुआ है यह प्रमाणित नहीं हो सकती। ज्ञान स्वतः सिद्ध है, सहज है, अपौरुषेय है। मैं फिर कहूँगा कि ज्ञान के सम्बन्ध में यह धारणा विश्व-सृष्टि के किसी भी धर्म अथवा मज़हब में नहीं है। अब एक दूसरी बात पर ध्यान दो। ईश्वर ने सृष्टि बनायी है- यह तो सब मानते हैं। किसी-किसी मज़हब में नहीं भी मानते। जैन धर्म ईश्वर को नहीं मानता, सृष्टि को अनादि मानता है और कहता है कि सृष्टि कर्म-प्रभाव से चलती है। बौद्ध धर्म भी ईश्वर को नहीं मानता। वह परमतत्त्व को शून्य मानता है। परन्तु भक्ति जैन-बौद्धि दोनों धर्मों में है। भक्ति का भी भेद होता है। बुद्धं शरणं गच्छामि अथवा ऊँ नमो अरिहंताणं इन वचनों से सिद्ध होता है कि वे व्यक्ति-विशेष को, बुद्ध को, अर्हन् को; तीर्थकंर को जो कि स्वयं अनेक जन्म में पवित्र हुए हैं, सर्वस्व मानकर उनकी उपासना करते हैं। चौरासी जन्मों में रहने के बाद बोधिसत्त्व जब शुद्ध होकर बीतराग बुद्धत्व को प्राप्त हुए तो उन्हीं की भक्ति बौद्ध धर्म में की जाने लगी। ईसाई धर्म में ईश्वर है, इस्लाम धर्म में ईश्वर है। सिक्ख धर्म में भी ईश्वर है। परन्तु वे ऐसा मानते हैं कि ईश्वर ने सृष्टि बनायी। अब आप ध्यान दो। वैदिक धर्म सिद्धान्त यह है कि ईश्वर ने सृष्टि बनायी ही नहीं, अपितु स्वयं सृष्टि बन गया। इससे फलितार्थ में, निष्कर्ष में बड़ा भारी भेद होता है। जिस प्रकार कुम्हार घड़ा बनाकर उसे बाज़ार में बेचने के लिए भेज देता है अथवा सुनार जेवर बनाकर दूसरों के पहन ने लिए दे देता है, उस प्रकार ईश्वर सृष्टि बनाकर अपने से अलग नही करता। दार्शनिक भाषा में ईश्वर विश्व का निमित्त कारण ही नहीं, उपादान कारण भी है। यही वैदिक धर्म की विशेषता है जो और कहीं नहीं है। ईश्वर केवल कुम्हार ही नहीं, माटी भी है। जिस माटी से घड़ा बनता है, वह ईश्वर है, वह ईश्वर है और घड़ा तथा घड़े का एक-एक टुकड़ा भी ईश्वर रूप है। ईश्वर केवल सुनार ही नहीं, सोना भी है। जेवर चाहे उसकी शक्ल-सूरत कुछ भी हो, कड़ा हो, कुण्डल हो, हार हो सब -का- सब स्वर्ण ही है। तात्पर्य यह कि ईश्वर ही देवता है, दानव है, पशु-पक्षी है, मनुष्य है, स्त्री-पुरुष है। वही अमीर-ग़रीब है और वही चींटी-हाथी है ईश्वर ने किसी दूसरे मसाले से यह सृष्टि नहीं बढ़ी। अपितु वह स्वयं स्वरूप में प्रकट हुए है। यह सिद्धान्त आप विश्व के किसी भी धर्म में नहीं प्राप्त करेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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