गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 12
इस प्रकार दर्शनपूर्वक जो ईश्वर की भक्ति है, इसी को दर्शनशास्त्र बोलते हैं। पहले ईश्वर का दर्शन करो- एक सबके संचालक रूप में, दूसरा सर्वरूप में। गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं- ‘सर्व सर्वगत सर्व उरालय।’ परमेश्वर ही सब है, सबमें है और सबके हृदय में रहता है। यदि यह बात ध्यान में आ जाये कि ईश्वर जड़-चेतन, चर-अचर सबमें है, वही चलने वाला है और वही चलाने वाला है तो मानव-समाज का दृष्टिकोण इतना उदार हो जायेगा कि भाषा का पक्ष लेकर मानवता का, मज़हब का पक्ष लेकर धर्म का, प्रान्त का पक्ष लेकर, राष्ट्र का पक्ष लेकर विश्व का और दृश्य प्रपंच का पक्ष लेकर अदृश्य परमात्मा का तिरस्कार नहीं किया जा सकेगा। क्योंकि ये सब परमेश्वर के ही स्वरूप है। अब भक्ति का स्वरूप क्या है इसपर विचार करें। स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः। गीता कहती है कि हमें भक्ति में पूजा उसकी की करनी है जो सबमें है, सबका संचालक है और सर्वरूप है। हम एक महात्मा के पास बैठे थे। हमारे एक साथी घास नोंचने लगे। वे महात्मा किसी आसन पर नहीं, धरती पर ही बैठते थे। जब हमारे साथी ने कुछ हरी-हरी दूब नोंच ली, तब वे बोल पड़े, अरे क्या करते हो? देखो यह परमेश्वर माटी में-से निकलकर कैसे हरी-हरी घास के रूप में आया है। इसको यदि गाय चरेगी तो दूध बनेगा। वह दूध मनुष्य पायेगा तो उससे वीर्य बनेगा। उस वीर्य से मनुष्य का निर्माण होगा। यह माटी मनुष्य रूप धारण करने के लिए दूब बनी है। तुम इसको नोंचकर फेंक दोगे तो फिर इसको दूब और मनुष्य बनने में वर्षों लग जायेंगे। तुम बड़े आदर के साथ धरती पर पाँव रखो, यह सोचकर कि धरती भी परमेश्वर है। मुँह से आवाज निकालो परन्तु यह सोचकर बोलो कि जिससे हम बात कर रहे हैं उसमें भी परमेश्वर है इतना ही नहीं, तुम्हारी बात जो पास-पड़ोसन में सुन रहे हैं, उनमें भी परमेश्वर है। महात्मा ने कहा कि हमारी जीभ से आवाज निकलती है, मीठी-मीठी या कड़वी-कड़वी, उसको यहाँ रहने वाले कीड़े, पतंगे भी सुनते हैं। उनके काम में भी हमारी आवाज कर्ण-कर्कश होकर कटु होकर नहीं जानी चाहिए; क्योंकि वे भी परमेश्वर हैं। तो, ईश्वर सबमें हैं, ईश्वर सब है, ईश्वर सबसे परे है और ईश्वर अपने-आपमें है। हम आपको श्रीमद्भागवत की बात सुनाते हैं। उसके ग्यारहवें स्कन्ध में यह प्रश्न उठा कि ईश्वर सबमें है तो अपने-आपमें है कि नहीं? उत्तर मिला कि अपने में भी है। जब सबमें है तो अपने में क्यों नहीं होगा! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज