गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 6
यदि आप कदाचित् ईश्वर को न मानते हों, तो भी दृढ़ता से प्रतिज्ञा कीजिए। कि आज के दिन में किसी का बुरा नहीं करूँगा, झूठ नहीं बोलूँगा, मौन रहूँगा। मौन रहना भी धर्म है बोलने की आवश्यकता हो तब सत्य बोलना चाहिए। धर्म का यह नियम है कि-
बिना पूछे किसी को उपदेश न करो। यदि कोई पूछता हो, पर बेक़ायदे डण्डा लेकर खड़ा हो जाये और कहे कि यह बात तुम्हें बतानी ही पड़ेगी तो भी नहीं बताना चाहिए। रामचरितमानस में एक प्रसंग है कि बिना नमस्कार किये पूछने वालों को बिल्कुल नहीं बताया गया। अतः प्रश्न कर्ता को नम्र होना पड़ता है। आपको कितनी भी जानकारी हो परन्तु उनके सामने बिल्कुल अनजान की तरह हो जाना चाहिए, जो क़ायदे से न पूछते हों या पूछते ही न हों। यह मनु जी का कथन है। मैं मनु जी का नाम लेकर आपकी बुद्धि पर कोई दबाव नहीं डालना चाहता, लेकिन बात आपके ध्यान में रहनी चाहिए। तो योगाभ्यास किसलिए? अपनी बुद्धि को, चरित्र का ठीक करने के लिए। प्रातःकाल उठिये, प्रतिज्ञा कर लीजिए। कि आज के दिन चाहे कुछ भी हो जाये, परन्तु। किसी को अपशब्द नहीं कहेंगे, बुरा नहीं कहेंगे, किसी का अपमान नहीं करेंगे, किसी को हानि नहीं पहुँचायेंगे। पहले प्रातःकाल प्रतिज्ञा कीजिए। फिर सांय काल दृढ़ता से बैठिये और निरीक्षण कीजिए। कि आज मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, प्रार्थना की थी, भगवान के चरण-स्पर्श के साथ-साथ शपथ ली थी वह ठीक-ठीक पूरी हुई कि नहीं? यदि नहीं हुई तो पछताइये, पश्चाताप कीजिए और आगे ऐसा नहीं करेंगे- इसकी प्रतिज्ञा कीजिए। तो उसने अपने ऊपर नियन्त्रण करने के लिए नियम का और दूसरों से व्यवहार करते समय यम का पालन करना चाहिए। नियम और यम से ही इस लोक में प्रतिबन्ध अथवा नियन्त्रण स्थापित होता है। सत्य, अंहिसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - ये पाँच यम हैं। मन में किसी के प्रति क्रोध हो अथवा किसी को हानि पहुँचाने की भावना हो, तो अंहिसा का व्रत आवश्यक है। जो बहुत बोलते हैं, जिनकी जुबान काबू में नहीं वे झूठ ज़रूर बोलते हैं। यदि कोई ऐसा समझता है और बोलता है कि मैं झूठ कभी नहीं बोलता, तो यह भी एक झूठ है। ऐसा कौन होगा कि जिसकी जीभ ने कभी-न-कभी धोखा न दिया हो? तो सच बोलना तथा किसी को तकलीफ़ न पहुँचना, सत्य और अहिंसा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति 2.110
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