सत्य

Disamb2.jpg सत्य एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सत्य (बहुविकल्पी)

सत्य हिन्दी का एक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- यथार्थ, वास्तविक, असली, प्रामाणिक, सच्चा और ईमानदार आदि।

'महाभारत भीष्म पर्व' में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर से सत्य-असत्य का विवेचन, धर्म का लक्षण तथा व्यावहारिक नीति का वर्णन किया है। युधिष्ठिर पूछते हैं- "भरतनन्दन! धर्म में स्थित रहने की इच्छा वाला मनुष्य कैसा बर्ताव करे? विद्वान! मैं इस बात को जानना चाहता हूँ। भरत श्रेष्ठ! आप मुझसे इसका वर्णन कीजिये। राजन! सत्य और असत्य ये दोनों सम्पूर्ण जगत को व्याप्त करके स्थित हैं; किन्तु धर्म पर विश्वास करने वाला मनुष्य इन दोनों में से किसका आचरण करे। क्या सत्य है और क्या झूठ? तथा कौन-सा कार्य सनातन धर्म के अनुकूल है? किस समय सत्य बोलना चाहिये और किस समय झूठ?"

भीष्म जी ने कहा- "भारत! सत्य बोलना अच्छा है। सत्य से बढकर दूसरा कोई धर्म नहीं है; परंतु लोक में जिसे जानना अत्यन्त कठिन है, उसी को मैं बता रहा हूँ। जहाँ झूठ ही सत्य का काम करे[1] अथवा सत्य ही झूठ बन जाय[2]; ऐसे अवसरों पर सत्य नहीं बोलना चाहिये। वहाँ झूठ बोलना ही उचित है। जिसमें सत्य स्थिर न हो, ऐसा मूर्ख मनुष्य ही मारा जाता है। सत्य और असत्य का पालन करने वाला पुरुष ही धर्मज्ञ माना जाता है। जो नीच है, जिसकी बुद्धि शुद्ध नहीं है तथा जो अत्यन्त कठोर स्वभाव का है, वह मनुष्य भी कभी अंधे पशु को मारने वाले बलाक नामक व्याध की भाँति महान पुण्य प्राप्त कर लेता है।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किसी प्राणी को संकट से बचावे
  2. किसी के जीवन को संकट में डाल दे
  3. महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 109 श्लोक 1-13

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