गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 2
श्रीरामचन्द्र के चरित्र में आपको करुणा भी मिलेगी, गिद्ध पर कितनी करुणा है उनकी। किन्तु आपको उनके चरित्र में करुणा के साथ-साथ कठोरता भी मिलेगी। बड़ी भारी कठोरता मिलेगी। श्री रामचन्द्र स्वजन निष्ठुर है। उन्होंने भरत के प्रति, सीता के प्रति, लक्ष्मण के प्रति स्वयं अपने प्रति कुछ कम कठोरता नहीं की। परन्तु उनकी कठोरता में हित की दृष्टि है। इसी प्रकार उनकी कोमलता में भी हित की दृष्टि है। भवभूति ने कहा- वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि। अर्थात लोकोत्तर पुरुष का चित्त कठोर भी होता है और मृदु भी होता है, परन्तु उनमें हित का वियोग कभी नहीं होता। उनका मन सदा-सर्वदा से हित से संयुक्त रहता है। श्रीकृष्ण ने संजय से कहा धृतराष्ट्र से कह देना कि- कृष्णो धनंजस्यात्मा कृष्णास्यात्मा धनंजयः। अर्जुन के आत्मा का नाम कृष्ण है और कृष्ण के आत्मा का नाम अर्जुन है। एक ही आत्मा के दो नाम हैं- कृष्ण और अर्जुन, नर और नारायण ! सत्येकं द्विधा स्थितम्। तो, दोष जो आ जाते हैं उनको पहचानने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है। मैं बार-बार कहता हूँ कि दुनिया के सारे मज़हब श्रद्धाप्रधान हैं और गीता धर्म बुद्धि प्रधान है। ज्ञान का तात्पर्य केवल आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान अद्वैतज्ञान से ही नहीं है। उस लौकिक बुद्धि से भी है जो परमार्थ को साथ लेकर चलती है। वह चलती है लोक में, किन्तु परमार्थ को छोड़कर नहीं, साथ लेकर चलती है। पहले बताया गया कि बुद्धि का दोष है तृष्णा। तृष्णा का मूल है काम-लोभ मूल है संकल्प। इनकी भी वंश-परम्परा होती है और उनका वर्णन ही वैसे होता है जैसे भाटलोग हमारी पूर्व पीढ़ी का वर्णन करते हैं। एक बार यह जानने की आवश्यकता पड़ी कि हमारे पूर्वज हिमालय का कछार छोड़कर कितने पहले काशी नरेश के पास आये थे। तो भाटों की विरुदावली देखी गयी और पता चला कि हमारे पूर्वज हमसे पन्द्रह पीढ़ी पहले काशी नरेश के पास आये थे। तो, देखो, हमारे मन में हिंसा आती है; हमारे मन में तृष्णा आती है। हिंसा क्रिया में होती हैं, क्रोध मन में होता है और द्वेष संस्कार में रहता है। हिंसा की अपेक्षा क्रोध अन्तरंग है और क्रोध की अपेक्षा द्वेष अन्तरंग है। क्रोध जलाता है और द्वेष सुलगता है। हिंसा दूसरे को जलाती है। यदि आप हिंसा रोकना चाहते हो तो वह केवल पुलिस और क़ानून से नहीं रुकेगी। तब रूकेगी जब लोगों के मन में क्रोध कम होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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