गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 8
अब आप देखो कि योगी की स्थिति क्या है? वह चलते-फिरत, खाते-पीते, उठते -बैठते और हँसते-गाते, सब समय सारा व्यवहार करते हुए भी शासन करता है। पंचदशीका श्लोक देखिए- ज्ञानिना चरितुं शक्यं सम्यग् राज्यादिलौकिकम्। श्रुति कहती है कि जिसको ज्ञान हुआ वह स्वराट् हो गया सम्राट हो गया सर्वाधिपति हो गया। उसको कोई देवता भी नीचा दिखाना चाहे तो नहीं दिखा सकता। वह निर्भय हो जाता है। स अभयं भवति स स्वराट् भवति स सम्राट भवति। अब बोले कि यह सब तो ठीक है। महाकाव्य भी आगये, किन्तु यह हुआ योगज्ञान। इससे जीवन में दृष्टिकोण क्या आता है, तो देखिए- आत्मौपप्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन:। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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