गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 8
श्रीकृष्ण का तात्पर्य यह है कि वाहे समाधि लगती हो अथवा साँस साँस में सोऽहं-सोऽहं का जप होता हो, किसी भी अवस्था में साधन नहीं छोड़ना। तुम जप करो। तप करो, व्रत करो, योग करो-सर्वथा वर्तमानोऽपि में वह सब है। परन्तु दूसरों के साथ अपनी आत्माके समान तादात्मय रक्खो। भगवान राम का जीवन देखो। महर्षि वाल्मीकि अपनी रामायण में कहते हैं कि जब राम किसी को दुःखी देखते हैं तो स्वयं दुःखी हो जाते हैं। श्रीकृष्ण भगवान भी सुदामा की गरीबी देखकर द्रवित हो उठते हैं और उनकी क्या दश होती है, कवि के शब्दों में देखिए- पानी परात का हाथ छुयो नहीं, नैंनेनके जल सों पग धोए। श्री रामचन्द्र जी जटायु को आहत देखकर विह्वल हो जाते हैं और उसके धूलि धूसरित अंगको अपनी जटाओं से झाडते है– जटायकी धरि जटान सो झारे। अस्तु, आप दुःखी को देखकर दुःखी होंगे ते आपके योग में, ज्ञानमें कोई बाधा नहीं पड़ेगी। दुःखी तो आपकी ही आत्मा है। उसके साथ मिल जाइये। इसी प्रकार जब आप किसी को सुखी देखिए तो सुखी हो जाइये। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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