गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 10
यह तो स्वाभाविक ही है कि जो उसके मन के अनुकूल होगा वह प्रिय होगा और जो उसके मन के प्रतिकूल होगा वह अप्रिय होगा। संसार में सबके प्रिय-अप्रिय, शत्रु-मित्र, सुख-दुःख और अनुकूल-प्रतिकूल होते रहते हैं। निर्माण तो केवल अपने मन का करना होता है, बाहर की परिस्थितियों का नहीं। यही आध्यात्मिक साधना है। साधक अपने मन को ही इतना पक्का कर लेते हैं कि चाहे जैसा आवेगा वैसा सहते जायेंगे, संभालते जायेंगे, पार करते जायेंगे। यदि अपना हृदय ही अपने काबू में नहीं रहा, उसमें शोथ हो गया तो फिर हम क्या कर सकते हैं? जिस प्रकार शरीर में शोथ का रोग होता है, उसी प्रकार जब संसार की प्रिय वस्तुओं के प्राप्त होने पर हृदय फूल जाये, तब समझिये कि वह रुग्ण हो गया। इसी तरह अप्रिय की प्राप्ति होने पर जब हृदय सूख जाता है तब भी वह रोगी हो जाता है। ये सब मानस रोग हैं। इसलिए अप्रिय घटित होने पर, अप्रिय वस्तु या व्यक्ति मिलने पर, अनचाही परिस्थितियाँ प्राप्त होने पर मनुष्य को उद्वेग नहीं होना चाहिए। क्योंकि अत्यन्त हर्ष अथवा अत्यन्त उद्वेग में बुद्धि ठीक काम नहीं करती। बहुत घबराहट में भी बुद्धि बिगड़ जाती है और बहुत खुशी में भी बुद्धि बिगड़ जाती है। शास्त्र किसी का हाथ पकड़कर काम कराने के लिए नहीं होते। ये न किसी का हाथ पकड़ते हैं और न किसी से हाथ पकड़कर काम कराते हैं। वचनं ज्ञापकं न तु कारकम् - वचन केवल आपको ज्ञान दे सकता है, आपसे काम करवा नहीं सकता। समष्टि में प्रिय-अप्रिय की जो परिस्थितियाँ आती हैं, वे कुछ तो प्रकृति से आती हैं, कुछ प्रारब्ध से आती हैं, कुछ समाज से आती हैं, कुछ ईश्वर से आती हैं और कुछ अनिवर्चनीय अचिन्त्य कारण से आती हैं। संसार में सब कुछ हमारे ही करने से नहीं होता। इसलिए इसमें अपने को ऐसा बना लेना चाहिए कि अत्यन्त हर्ष में फूल न उठें और अत्यन्त उद्वेग में क्लान्त न हो जायें, श्रान्त न हो जायें, गिर न जायें। सौ बात की एक बात यह है कि हमारी बुद्धि बनी रहनी चाहिए डाँव डोल बुद्धि से काम नहीं चलता। भली-भाँति ऊहापोह और पूर्वापर अर्थात पहले-पीछे का विचार करके, अपने मन में स्थिरता लानी चाहिए। निश्चय शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है निचोड़ जगह-जगह से चुन-चुनकर एक निष्कर्ष, एक निचोड़ निकालने का नाम निश्चय होता है। चय माने चयन और निः माने निःशेषतया। जैसे कम्प्यूटर में सारा विवरण ठीक-ठीक डाल दें तो वह उत्तर देता है वैसे ही हमारी बुद्धि भी भूत, भविष्य का पूर्णतया विचार करके किसी निश्चय पर पहुँच जाय तो वह स्थिर बुद्धि होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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