गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 6
वह भी एक बौद्धकर्म है। बैठकर चिन्तन करना क्या कर्म नहीं? वह बुद्धि का कर्म है। तो केवलेन, कायेन, केवलेन मनसा, केवलया वाचा, केवलया बुद्धाया कर्म भी होते हैं। कई लोग सबको एक में समवेत करके ऐसा काम करते हैं, जिसमें शरीर भी होता है, मन भी होता है, वाणी भी होती है और बुद्धि भी होती है। कुछ लोग केवल इन्द्रियों से ही काम करते हैं। कर्म कैसे भी हो उसे करने में एक होशियारी रखने की जरूरत है। पहले तो उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए कि हम किसलिए यह कर्म कर रहे हैं? यदि उद्देश्य स्पष्ट नहीं तो कर्म किधर ले जायेगा? अपकी मोटर चल रही है; परन्तु आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं, यह बात आपके मन में साफ नहीं, तो मोटर बेचारी आपको कहाँ पहुँचायेगी? इसी प्रकार आप हाथ-पाँव हिला रहे हैं और आपके जीवन की मोटर चल रही है। परन्तु आपको कहाँ पहुँचाना है, यह बात मालूम होनी चाहिए। यदि आप संसार की वस्तुओं को अपनी ओर लाने के लिए कर्म करते हैं तो देने के लिए भी कर्म करना चाहिए। कर्म देने के लिए होता है, लेने के लिए नहीं। यह तो स्वाभाविक ही है कि जब आप देना शुरू करेंगे तो आपके पास आना शुरू हो जायेगा। नहीं तो देंगे कहाँ से? यदि हम विचार देना प्रारम्भ कर दें और हमारे पास विचारों का आना बन्द हो जाये तो हम आपको किस प्रकार विचार दे सकेंगे? जैसे-जैसे विचार देते हैं वैसे-वैसे नये-नये विचार हमारे अन्दर उदित होते हैं। कभी-कभी तो अपूर्व विचार आते हैं, अद्भुत विचार आते हैं। यदि कर्म का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ है तो उस उद्देश्य का क्रमशः विस्तार करके उसको परिवार के साथ फिर गाँव के साथ, फिर जाति के साथ, फिर मज़हब के साथ, फिर राष्ट्र के साथ, फिर मानवता के साथ, फिर सम्पूर्ण विश्व के साथ और फिर उससे भी बढ़कर ईश्वर के साथ जोड़ा जा सकता है। ईश्वर के लिए कर्म का संकल्प होने पर कोई बचा नहीं रह जायेगा और हमारा वह कर्म सबके लिए हो जायेगा। क्योंकि ईश्वर सर्वात्मा है। उसकी प्रसन्नता है, उसकी सेवा सबकी सेवा है। यत: प्रवृतिभूतानां येन सर्वमिदं ततम्। तो आप देखिये कि अपने कर्म द्वारा किसकी पूजा कर रहे हैं? कस्मै देवाय हविषा विधेम। यह जो आपके हाथ में हविष्य है, जिसका आपने कर्म के द्वारा निर्माण किया है और जिसके द्वारा कर्म सम्पन्न होने वाला है, वह किसके लिए है? यहाँ कस्मै देवाय का अर्थ एकस्मै देवाय अर्थात ‘एक देवता के लिए है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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