गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 5
ध्रुव को अर्थ मिला जिज्ञासु को ज्ञान मिला। ज्ञानी को जीवन मुक्ति का विलक्षण सुख मिला। जो सात्त्विक पुरुष होगा, जिसके जीवन में सत्त्वगुण होगा और सुकृति होगा, तो उसके अन्तिम जीवन के अन्त में भगवान का स्मरण होता है और- अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। उसको तो भगवान की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए अपने जीवन में सत्त्वगुण बढ़ाना चाहिए। परन्तु यह अध्याय जो है वह केवल सत्त्वगुण तक ही पहुँचाकर छोड़ने के लिए नहीं है- गुणातीत करने के लिए है। आपको आश्चर्य होगा कि जहाँ ब्रह्मसूत्र में यह विचार है- रम्भति संपरिष्वक्तो। रम्भति अधिकरण में कि जब पुण्यात्मा मनुष्य मरने लगता है तो दो अमानव पुरुष आते हैं और उसको लेकर परलोक में जाते हैं, वहाँ शंकराचार्य ने लिखा है कि देखो, यह जो प्रसंग है, यह चाहने के लिए नहीं है कि भगवान के पार्षद आयें और हमको ले जाँय- यह भगवान के पार्षदों को कष्ट देने के लिए नहीं है। बल्कि इतना वैराग्य देने के लिए हैं कि हमको कहीं जाने-आने की आवश्यकता ही न रहे। इसलिए सत्त्वगुण भी निर्मल फल की प्राप्ति के लिए नहीं है और वह निर्मल फल कोई है निर्माया परमात्मा की, माया रहित परमात्म की प्राप्ति है। गुणातीत होने के लिए ही यह सारा-का-सारा प्रसंग है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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