गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 4
यह तो साक्षात अनुभव-स्वरूप है। इसलिए बाहर का कोई दूसरा ईश्वर है, तो वह हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है। लेकिन जहाँ अपना आत्मा ही परमेश्वर है, वहाँ उसके होने में किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। और उसी के सम्बन्ध ये सारी सत्ताएँ, सारी चेतनाएँ सारी प्रियताएँ और सारी वस्तुएँ-रोशन हो रही हैं, दीख रही हैं। यह अनुभव ही परमात्मा एक ऐसा स्वरूप है जिसके, कोई काट नहीं सकता। सब-के-सब जो इन्द्रियों सें प्रत्यक्ष होते हैं, कट सकते हैं, सारे अनुमान कट सकते हैं। उपमान, अर्धापति अनुपलब्धि कट सकती है परन्तु जो सबका अनुभव करने वाला अपना आत्मा है वह नहीं कट सकता और उसके बिना आँख, कान, नाक सबके अलग-अलग होनेपर भी कोई काम नहीं कर सकते हैं। उस परमात्मा के साथ इस सृष्टि का सम्बन्ध, तादात्म्य है। अर्थात् परमात्मा ही सृष्टि के रूप में दीख रहा है, और अपने प्यार से, अनुग्रह से भर रहा है। उसके सम्बन्ध के बिना तो सृष्टि की कोई वस्तु ही नहीं हो सकती। इसलिए-तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत। वह सर्वज्ञ है। कौन? जो सर्वरूप में और सब भावनाओं के द्वारा परमेश्वर का भजन करता है। प्रश्न: महद् ब्रह्मयोनि तथा ब्रह्मबीज से उत्पन्न हुए जीव को प्रकृति के गुण बाँधते हैं। अन्यथा वह जीवात्मा अविनाशी होता है। जिस काल में वह गुणों के संसर्ग में नहीं आता, वह किस प्रकार की अविनाशी अवस्था में स्थित रहता है? उत्तर: ऐसा है कि अवस्थाएँ जो हैं, ये काल की बच्ची हैं। अवस्थाएँ माने काल के टुकड़े। जाग्रत अवस्था, स्वप्नावस्था, सुषुप्ति-अवस्था, समाधि-अवस्था। समाधि में भी चार प्रकार के सम्प्रज्ञात और चार प्रकार से असम्प्रज्ञात-आठ अवस्थाएँ-सम्पूर्ण निरोध-से सब-के-सब काल की सीमा के भीतर होते हैं। इन सब अवस्थाओं के आते-जाते, चलते-बदलते रहने पर भी जो एकरस प्रकाशमान है, उसका नाम परमात्मा होता है और उसी से एक होने पर महात्मा हो जाता है। जबकि किसी अवस्था के साथ तादात्म्य है (तादात्म्य माने एकता), तब तक शुद्ध स्थिति नहीं है। यहाँ कहीं भी दृश्य में बँध जाना-स्थूल वस्तु1 में बँधना, सूक्ष्म वस्तु में बँघना और आनन्द में बँधना अपनी अस्मिता में बँधना ये चार प्रकार की तो सम्प्रज्ञात समाधि हैं और सविकल्प, निर्विकल्प, सबीज, निर्बीज ये चार प्रकार की असंप्रज्ञात समाधि हैं-इनमें-से किसी अवस्था को हम यह नहीं कह सकते कि यह परमात्मा है, क्योंकि अवस्था अन्तर्देश में होती है इसलिए देश की बच्ची हैं। किसी काल में होती हैं इसलिए काल की बच्ची हैं। उनका कोई आकार होता है इसलिए वस्तु की बच्ची हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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