गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 2
तीन श्लोकों में अक्षर अव्यक्त का स्वरूप और उसकी उपासना, दोनों भगवान ने बतायी और बताकर कहा कि देहाभिमानी के लिए वह कठिन है। अब सारा-का-सारा अध्याय जो है-‘मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता-उपासते’ की व्याख्या है। माने सगुण-साकार भगवानृ की भक्ति कैसे की जाती है। ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। सगुण का उपासक अपनी दोनों बाँहों में मुझे भर लेता है और मैं उसको अपनी दोनों बाहों में भर लेता हूँ। और निर्गुण के उपासक को बाँह छोड़ देनी पड़ती है और मैं भी अपनी बाँह से उसको पकड़ता नहीं। वह आवे मिल जावे। यह सगुण उपासना का प्रसंग यहाँ से शुरू होता है। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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