गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 2
गीता बोलती है-
चौदहवें अध्याय का श्लोक है, जो अव्यभिचरित भक्ति योग से मेरी सेवा करते हैं- श्रीकृष्ण की सगुण की-‘सगुणान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते’-वह गुणातीत हो जाते हैं और उन्हें ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है। भक्ति से कौन मिलता है? ब्रह्म।
भगवान में जो भक्ति है उसका नाम ज्ञान है। यह श्लोक तेरहवें अध्याय का है। तेरहवें अध्याय में हैं- मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते। मेरा भक्त जब इसको जान लेता है तो मेरा स्वरूप हो जाता है। भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः। भक्ति के द्वारा मुझे पहचानता है और मुझे पहचानकर मुझसे एक हो जाता है। भक्ति का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल भक्ति है। जो पहले ज्ञान मार्ग से चलते हैं, उनको कुछ अटपटा-सा लगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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