गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 3
यदि तुमने इसी जीवन में परमात्मा को जान लिया तो तुम्हारा जीवन सत्य हो गया। परमात्मा से मिल गया। यदि इसी जीवन में परमात्मा को नहीं जाना तो ‘महती विनष्टिः’। अगले जन्म के लिए कुछ रखना ही नहीं। आपको जो कुछ जानना है, जो कुछ करना है, जो कुछ पाना है, जो कुछ छोड़ना है, इसी जीवन में। इन चारों बातों पर आप ध्यान दें। आपको इस जीवन में जो जानना है सो जान लीजिये, जो करना है सो कर लीजिये-जो पाना है सो पा लीजिये। जो छोड़ना है सो छोड़ दीजिये। अगले जन्म के लिए कुछ उधार मत रखिये। नहीं तो ‘महती विनष्टिः’। फिर न आप कर सकेंगे, न पा सकेंगे, न छोड़ सकेंगे। वैसे जीवन की अनेक सम्भावनाएँ हैं परन्तु उनके होने पर भी जो आवश्यक है-आप अपना धन पूरा करना चाहते हैं? आपको कल्पना है कि आपके पास कितना हो जावेगा तब आप पूरा मानेंगे? जितना भी बढ़ता जायगा-और, और, और की वासना बढ़ती जायगी। वह कभी पूरा नहीं होगा। जो आप करना चाहते हैं-कहीं आपको जाकर सन्तोष होगा? कि जो करना था सो कर लिया? जो पाना था सो पा लिया? जो छोड़ना था सो छोड़ दिया? नहीं, ऐसे आपको सन्तोष नहीं होगा। जब आपकी आत्मा का जो पूर्ण स्वरूप है उसको आप जानेंगे तभी आपका जीवन पूरा होगा और तभी सत्य का साक्षात्कार होगा। जो सत्य के ज्ञान के बिना भी अपने को ज्ञानी मानते हैं और सत्य को समझे बिना ही करते रहते हैं- सत्य को समझे बिना ही पाते रहते हैं-उनका जीवन कैसा है? उनका जीवन तो ऐसा है जैसे-हमको पैसा चाहिए-चाहे ईमानदारी से मिले, चाहे बेईमानी से। जो चाहे बोलते रहते हैं पर सत्य को समझते नहीं, उनका जीवन कैसा है? सत्य चाहे कुछ भी हो, हम तो बोलते रहेंगे। जो लेते हैं-हमारे हक का हो या न हो, हम तो लेते रहेंगे। सत्य के ज्ञान के बिना हमारा जीवन कैसा हो रहा है-सच्चाई को तो समझते नहीं-तो ‘परमं वेदितव्यम्’ क्या है-यह जो परमात्मा का अक्षर स्वरूप है-जो नाशवान् में अविनाशी है, जो अनेक में एक है, जो जड़ता में ज्ञान है, दुःख में सुख है, वह जानने योग्य है। एक परमात्मा ही जानने योग्य है। न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः। यह दुनिया का जो परम विधान है, जहाँ से यह दुनिया निकलती है और जहाँ यह समाती है उसका ठिकाना कौन-सा है? इसको जानने में यह जो वासनाओं का झगड़ा है, आप सब भले लोग हैं-आप के बीच में बोलने लायक नहीं है पर सब एक दूसरे की जेब काटने को तैयार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ केन 2.5
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