गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 8
यह एक संचार कर देती है और घुटने का दर्द मिट जायेगा। यह शब्द-चिकित्सा है। यह जो हमारे शरीर में भगवन्नाम की ध्वनि व्याप्त होती है-रोम-रोम में, रग-रग में, हमारे तन में, हमारे मन में, इस ध्वनि के कारण शरीर में भी परिवर्तन हो जाता है और मन में भी परिवर्तन हो जाता है। इसको आप साधारण बात न समझें। हमको तो आश्चर्य होता है कि लोगों का जप-पर विश्वास क्यों नहीं होगा? एक ताराबाई महाराष्ट्र में थीं। वे विदेश की यात्रा करने गयीं थीं तो उनकी महिमा यह थी कि उनके सामने एक पात्र में पावडर रखा जाता था। जब वह वीणा लेकर बजाती थीं तो जो राग-रागिनी बजातीं, उस राग-रागिनी का चित्र उस पावडर पर बन जाता था। माने ध्वनि जाकर जब उस पावडर पर टकराती थी तब कुछ पावडर उधर, कुछ इधर होकर वैसी तसवीर बन जाती। वहाँ एक बंगाली सज्जन थे तो उन्होंने कहा कि तुम शंकराचार्य का भैरवाष्टक गाकर सुनाओ तो उन्होंने भैरवाष्टक को राग-रागिनी में बाँधकर जो गाया सो उस पावडर पर एक तो बन गया कुत्ता और एक बन गया नाटा-सा काला-कलूटा पुरुष भैरव। शब्द में शक्ति होती है, उसके उच्चारण में, उसकी ध्वनि में शक्ति होती है। हमने एक खिलौना देखा। जब हम बोलते थे गो (go), वह खिलौना चलते देखा-जब हम बोलते थे स्टाप (stop)-वह खिलौना जो अंग्रेजी समझता था, संस्कृत नहीं समझता था, स्टाप कहने पर खड़ा हो जाता था। मैंने पूछा यह क्या है? तो बोले इसकी बैटरी ऐसे ढंग से बनायी गयी है कि जब ‘गो’ शब्द टकराता है तब बैटरी बन्द हो जाती है। इसी से यह खिलौना चलता है और हिलता है। यह एक शब्द की शक्ति बताने के लिए मैंने सुनाया। अभी हमारे पास कोई शाबर मन्त्रों की चर्चा कर रहा था। तो मैंने दो-चार शाबर मन्त्र बचपन में सीखे थे। गोंडों से प्रत्यक्ष उसकी शक्ति देखने में आती थी। अब लोग कहेंगे कि यह सब अन्धश्रद्धा है, अन्धविश्वास है-हमने तो हमारे हृदय में उस पिटारी को बन्द कर दिया कि जा भाई, अब मत निकल-अब मत निकल क्योंकि; लोग सुनकर विश्वास नहीं करते हैं तो उस यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र की पिटारी थी उसे बन्द कर दिया। अब वह हमारे किये होता भी नहीं है। कोई हमसे कहना भी मत। न अब उसका स्मरण है। मन्त्र का हमने चमत्कार देखा है। शब्द में इतनी शक्ति है कि वह देवता को हृदय-से निकालकर बाहर रख दे और देवता को स्वर्ग में-से बुलाकर सामने ही खड़ा कर दे। ऐसी मन्त्रों में शक्ति होती है। ब्रह्मसूत्र में एक प्रकरण आया है-यह आपको जान-बूझकर सुनाते हैं-यह जो यज्ञ होता है, अग्निाहोत्र होता है-उससे अन्तःकरण की शुद्धि होती है। परन्तु वह तब करना चाहिए जब पत्नि साथ हो। पति-पत्नी मिलकर साथ में यज्ञ करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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