गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 5
यह स्थिति, जाग्रत–अवस्था में, सृष्टि, स्वप्नावस्था में और प्रलय, सुषुप्ति–अवस्था में जो हमको दिखायी पड़ते हैं-ये सब क्या है? हमारे अन्दर यह सामर्थ्य है। यह कहाँ से आया? इसके अन्तर्हित होने का कारण है-परमात्मा अलग हो गया और जीवात्मा अलग हो गया। शक्ति का लोप हो गया। परमात्मा और आत्मा एक हो गया तो सारी शक्तियाँ अपने काबू में आ गयीं। ‘अहमात्मा गुडाकेश’-आत्मा माने जाग्रत-अवस्था में काम करने वाला। हाथ काम नहीं करता, हाथ में आरूढ़ चेतन काम करता है। बुद्धि भी काम नहीं करती, बुद्धि में आरूढ़ चेतन काम करता है। तत्त्व ज्ञान भी अज्ञान को नहीं मिटाता है। यह जो हमारे जीवन में सब कुछ हो रहा है, उस पर जरा ध्यान दें। उसी को बोलते हैं ‘अत्ति इति आत्मा’। जो भाग करता है, उसे बोलते हैं आत्मा। ‘अतति व्याप्नोति’-इसका नाम है आत्मा। ‘आदत्ते इति आत्मा’-जो पुण्य-पाप को ग्रहण कर लेता है उसका नाम आत्मा। जो सुख-दुःख का भोग करता है,उसका नाम आत्मा। जो तीनों अवस्थाओं में चलता है, उसका नाम आत्मा और जो कभी नहीं थकता उसका नाम आत्मा। ‘न ताम्यति इति आत्मा’-यह कभी थकान का नाम नहीं लेता। घर बदल-बदलकर कुछ-न-कुछ समेटता रहता है। कुछ-न-कुछ फैलाता रहता है। कुछ-न-कुछ करता रहता है। थकान नाम की वस्तु आत्मा में नहीं है। इसलिए इसको बोलते हैं आत्मा। दर्शन पढ़ो, विज्ञान पढ़ो, इतिहास-पुराण पढ़ो, काव्य पढ़ो, कहानी पढ़ो कभी थकने का नाम नहीं आता है। यह सोते समय भी टुकुर-टुकुर देखता रहता है। यह जो तुम्हारे भीतर बैठा हआ द्रष्टा है-सुषुप्तिका भी द्रष्टा है-यह कौन है? तो भगवान ने बताया अहमात्मा। तुम और मैं ये दो चीज नहीं हैं। बिलकुल एक हैं। ‘अहमात्मा’ महावाक्य हो गया। ‘अहमात्मा’ ‘अयमात्मा ब्रह्म।’ ‘अहं ब्रह्मास्मि।’ यहाँ अहं माने ब्रह्म और आत्मा माने पराप्रकृति-अक्षर पुरुष। ये सब एक हैं। परमात्मा के योग का वर्णन है। सबके हृदय में परमात्मा हमसे जुड़कर, मिलकर रहता है। हम जब उसको अलग मान बैठते हैं, तब हमारी वे शक्तियाँ, वह ज्ञान और वह आनन्द सारा-का-सारा पीछे पड़ जाता है। हम व्यवहार में जो भी काम करें, उसको पकड़कर करें। उसके साथ मिलकर काम करें। हमारा मददगार कौन है? सारथि कौन है? यही अहं जीवन का सारथि है। जो अपने ज्ञान से, अपनी शक्ति से, अपनी सत्त से, अपने आनन्द से सर्वदा हमारे इस जीवन को अनुप्राणित करता रहता है, उस परमात्मा के साथ हमारा योग हो जाता है तब फिर क्या पूछना? किसके लिए रोयेंगे? किसके लिए दुःखी होंगे? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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