गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-1 : अध्याय 1-4
प्रवचन : 7
कोई एक महात्मा के पास गया और कहा कि महाराज हमारे मन में कामवृत्ति है इसका निवारण कैसे हो? उनका आशय उस कामवृत्ति से था जो संसार में स्त्री-पुरुष के मिलन-प्रसंग में प्रयुक्त होती है। महात्मा बोले कि किसी भी स्त्री या पुरुष के प्रति आकर्षण हो तो एक बार यह देखो कि उसका शरीर बिना चाम का है। फिर रक्त-मांस-मज्जायुक्त वीभत्स शरीर दिखायी पड़ने पर कामना की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी। यह वैराग्यवानों की? भक्तों की एक युक्ति है, कामवृत्ति से बचने की। श्री रंगक्षेत्र में एक सज्जन किसी स्त्री के ऊपर छाता लगाकर उसके आगे-आगे उसी की ओर मुँह करके पीछे की ओर चल रहे थे। श्री रामानुजाचार्य महाराज ने देखा; उनको बुलवाया और पूछा कि तुमको क्या चाहिए? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मुझे सौन्दर्य चाहिए। श्री आचार्यपाद ने अपनी आरती सजायी और जब वे आरती करने लगे तो भगवान ने अपना वह दिव्य सौन्दर्य माधुर्य प्रकट किया कि उनका दर्शन करते ही वे सज्जन विभोर हो गये और बोले कि बस-बस, अब मैं तो इसी सुन्दरता को जीवन भर देखता रहूँगा। भगवान के सौन्दर्य का अनुसन्धान करने से कामवृत्ति शिथिल होती है। जो लोग साकार भगवान को न मानते हों उनके लिए अभी यह बात नहीं कह सकता किन्तु आप हिमालय में बर्फ से ढँके हुए और उसकी चोटी पर समाधिस्थ कर्पूर-गौर भगवान् शंकर का स्मरण तो कर ही सकते हैं। कामवृत्ति का उदय होने पर आप उनका ध्यान उधर ले जाइये और फिर देखिये कि कामवृत्ति कितनी जल्दी क़ाफूर हो जाती है। संस्कृत में एक श्लोक हैः जिसका भाव यह है- भक्त कहता है कि ‘अरे काम तू अपने हाथ क्यों गन्दे कर रहा है। देख-देख; हमारे हृदय की ओर देख यह तो हमारे प्रियतम चन्द्रचूड़ के चरणारविन्द का चुम्बन कर रहा है।’ श्वेतवर्ण भगवान शंकर कामारि हैं उनका ध्यान करते ही काम भाग जाता है। स्त्री-पुरुष विषयक कामवृत्ति के निवारण के लिए साधु लोग और भी बहुत सी युक्तियाँ जानते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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