गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 6
अर्जुन ने प्रश्न किया- कथं विद्यामहं योगिन्।[1] मैं आपकी कैसे जानूँ? भगवान ने उत्तर दिया- अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। पहले सबसे पास जो मैं हूँ तुम्हारे ‘अपना आत्मा’ उसके रूप में मुझे जानो। और- केषु-केषु च भावेषु चिन्त्योसि भगवन्मया।[3] उसका उत्तर है- अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।[4] ‘आदि मध्य अन्त राम साहिबी तुम्हारी’ तुलसीदास जी ने कहा है। ‘कथं विद्यामहम्’ का उत्तर है- ‘अहमात्मा गुडाकेश’ और ‘केषु केषु च भावेषु चिन्त्योषु भगवन्मया’-इसका उत्तर है-‘अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च’। भगवान की बात कभी टेढ़ी होती है, कभी साधी होती है। भगवान खुद भी टेढ़े हैं और सीधे भी हैं। श्रीकृष्ण भगवान जरा टेढ़े-मेढ़े हैं। पाँव टेढ़ा, कमर टेढ़ी, ठुड्ढी टेढ़ी, आँख टेढ़ी। रामचन्द्र भगवान सीधे-सीधे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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