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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-3 : अध्याय 6'''</div> | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 4'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 4'''</div> | ||
− | समय पर जैसा होना होगा, वैसा हो जायेगा। तो अपनी बुद्धि को, विचार को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। विचार में परमात्मा है, हृदय में परमात्मा है। यदि तुम्हारे जीवन में कोई निश्चित पदार्थ, समाहित पदार्थ है तो वह परमात्मा ही है। उसके सिवाय और कुछ नहीं है। जब अपने निश्चिय में कोई गलती मालूम पड़ जाये तो उसे छोड़ देनी चाहिए। अपनी गलती पर अड़े रहने की कोई जरूरत नहीं। अपनी रहनी इस तरह बनाओ, कि अच्छा भाई, वैसा नहीं, ऐसा ही सही। | + | समय पर जैसा होना होगा, वैसा हो जायेगा। तो अपनी [[बुद्धि]] को, विचार को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। विचार में परमात्मा है, हृदय में परमात्मा है। यदि तुम्हारे जीवन में कोई निश्चित पदार्थ, समाहित पदार्थ है तो वह परमात्मा ही है। उसके सिवाय और कुछ नहीं है। जब अपने निश्चिय में कोई गलती मालूम पड़ जाये तो उसे छोड़ देनी चाहिए। अपनी गलती पर अड़े रहने की कोई जरूरत नहीं। अपनी रहनी इस तरह बनाओ, कि अच्छा भाई, वैसा नहीं, ऐसा ही सही। |
− | यह बात ध्यान में रखो कि | + | यह बात ध्यान में रखो कि आपकी तृप्ति कहाँ है? आपकी स्थिति कहाँ है? आपका चरित्र कैसा है? |
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;ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः। | ;ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः। | ||
;युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकांचनः।। <ref>6.8</ref></poem> | ;युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकांचनः।। <ref>6.8</ref></poem> | ||
− | यदि मनुष्य के मन में स्वार्थ न हो, भोग की वासना न हो, तो वह योगी है। कई लोग योगी के बारे में जो यह सोचते हैं कि वह कहीं हिमाचल की गुफा में रहता है और पीतल को सोना बना देता है तो | + | यदि मनुष्य के मन में स्वार्थ न हो, भोग की वासना न हो, तो वह योगी है। कई लोग योगी के बारे में जो यह सोचते हैं कि वह कहीं हिमाचल की गुफा में रहता है और पीतल को सोना बना देता है तो बिल्कुल गलत सोचते हैं। आप जो समझते हैं कि जिसने आसमान में हाथ मारा और हीरा-मोती निकाल दिया वह योगी है तो गलत समझते हैं। उसको योगी नहीं कहते। क्या आप समझते हैं कि योगी आँख को नाक और नाक को कान बना देगा? [[वेद]] को परम प्रमाण मानने वाले भगवान शंकराचार्य ने एक जगह दृढ़तापूर्वक कहा है कि- |
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− | अर्थात् एक | + | अर्थात् एक हज़ार वेद के मन्त्र पढ़े जायें तब भी घड़ा कपड़ा नहीं बन सकता। वस्तु का स्वभाव अन्यथा नहीं हो सकता। जो लोग यह मानते हैं कि आसमान भभूत बरसाता है और गोलोक की बनी हुई रबड़ी-मलाई भरुये<ref>कुल्हड़</ref> में आती है उनकी बुद्धि को धन्यवाद! ऐसे बुद्धिसागरों को क्या कहा जाये जो मानते हैं कि योगी हाथ मारते हैं आसमान में और घड़ी, जंजीर, जेवर, मंगलसूत्र आदि पैदा हो जाते हैं। |
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16:25, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 4
समय पर जैसा होना होगा, वैसा हो जायेगा। तो अपनी बुद्धि को, विचार को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। विचार में परमात्मा है, हृदय में परमात्मा है। यदि तुम्हारे जीवन में कोई निश्चित पदार्थ, समाहित पदार्थ है तो वह परमात्मा ही है। उसके सिवाय और कुछ नहीं है। जब अपने निश्चिय में कोई गलती मालूम पड़ जाये तो उसे छोड़ देनी चाहिए। अपनी गलती पर अड़े रहने की कोई जरूरत नहीं। अपनी रहनी इस तरह बनाओ, कि अच्छा भाई, वैसा नहीं, ऐसा ही सही। यह बात ध्यान में रखो कि आपकी तृप्ति कहाँ है? आपकी स्थिति कहाँ है? आपका चरित्र कैसा है?
यदि मनुष्य के मन में स्वार्थ न हो, भोग की वासना न हो, तो वह योगी है। कई लोग योगी के बारे में जो यह सोचते हैं कि वह कहीं हिमाचल की गुफा में रहता है और पीतल को सोना बना देता है तो बिल्कुल गलत सोचते हैं। आप जो समझते हैं कि जिसने आसमान में हाथ मारा और हीरा-मोती निकाल दिया वह योगी है तो गलत समझते हैं। उसको योगी नहीं कहते। क्या आप समझते हैं कि योगी आँख को नाक और नाक को कान बना देगा? वेद को परम प्रमाण मानने वाले भगवान शंकराचार्य ने एक जगह दृढ़तापूर्वक कहा है कि- न हि श्रुतिशतैरपि घटः पटयितुं शक्यते। अर्थात् एक हज़ार वेद के मन्त्र पढ़े जायें तब भी घड़ा कपड़ा नहीं बन सकता। वस्तु का स्वभाव अन्यथा नहीं हो सकता। जो लोग यह मानते हैं कि आसमान भभूत बरसाता है और गोलोक की बनी हुई रबड़ी-मलाई भरुये[2] में आती है उनकी बुद्धि को धन्यवाद! ऐसे बुद्धिसागरों को क्या कहा जाये जो मानते हैं कि योगी हाथ मारते हैं आसमान में और घड़ी, जंजीर, जेवर, मंगलसूत्र आदि पैदा हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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