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− | अब आपको संकल्प की बात सुनाता हूँ। सम्यक्त्व की कल्पना ही संकल्प है। वक्ता लोग कभी-कभी कथा में कल्पभेद की बात सुनाते हैं। रामकथा को लीजिए। वह महाभारत में दूसरी तरह से, भागवत में दूसरी तरह से, वाल्मीकि रामायण में दूसरी तरह से और अध्यात्म रामायण में दूसरी तरह से है। इधर बंगाल में जो कृत्तिवासी रामायण चलती है, उसमें दूसरी तरह से है। इसी प्रकार जैनों में दूसरी, बौद्धों में दूसरी, कम्बन की दूसरी और | + | अब आपको संकल्प की बात सुनाता हूँ। सम्यक्त्व की कल्पना ही संकल्प है। वक्ता लोग कभी-कभी कथा में कल्पभेद की बात सुनाते हैं। रामकथा को लीजिए। वह [[महाभारत]] में दूसरी तरह से, [[भागवत कथा|भागवत]] में दूसरी तरह से, वाल्मीकि रामायण में दूसरी तरह से और अध्यात्म रामायण में दूसरी तरह से है। इधर बंगाल में जो कृत्तिवासी रामायण चलती है, उसमें दूसरी तरह से है। इसी प्रकार जैनों में दूसरी, बौद्धों में दूसरी, कम्बन की दूसरी और रंगनाथन की दूसरी है। बोले भाई, राम तो एक हुए, उनकी कथा में भेद क्यों? इसका समाधान [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास जी]] करते हैं- |
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;कल्पभेद हरि चरित सुहाए। | ;कल्पभेद हरि चरित सुहाए। | ||
;भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए।</poem> | ;भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए।</poem> | ||
− | कल्प भेद से राम कथा में भेद है। अब इस | + | कल्प भेद से राम कथा में भेद है। अब इस कल्प पर विचार कीजिए। एक तो इसका अर्थ काल का एक भाग है। काल में [[युग]] है, [[मन्वन्तर]] है, [[कल्प]] है, महाकल्प है। कल्प का दूसरा अर्थ है कवि का संकल्प। एक कवि राम के चरित्र की जिस विशेषता का वर्णन करना चाहता है, उसकी अपने मन में कल्पना करता है। भगवान के लिए की हुई कोई भी कल्पना मिथ्या नहीं होती। काल अनादि है, अनन्त है और भगवान सर्वात्मा हैं। किसी के मन में [[ईश्वर]] सम्बन्धी कोई कल्पना आती है तो वह कहाँ से आती है? अवश्य ही सर्वत्मा भगवान ने कभी-न-कभी वैसा चरित किया होगा, तभी वह कल्पनाशील कवि के मन में प्रकट होती है। '''नह्यसंन्यस्त-संकल्पः''' हम अच्छाई की कल्पना तो करते ही रहते है, कोई-कोई कल्पना करते-करते जिद्दी भी हो जाते हैं किन्तु '''बुद्धेः फलनाग्रहम्''' यदि भगवान ने आपको बुद्धि दी है तो आप जिद्दी मत बनो। जिद्दी होना बुद्धिमान की पहचान नहीं। |
− | तो, संकल्प की बात पर आइये। कोई पिछली बात आपको बहुत अच्छी लगती है और आपके मन में संकल्प होता है कि वैसी ही अब फिर हो किन्तु वह नहीं होती आप दुःखी हो जाते हैं। यह दुःख कहाँ से आया? आपके | + | तो, संकल्प की बात पर आइये। कोई पिछली बात आपको बहुत अच्छी लगती है और आपके मन में संकल्प होता है कि वैसी ही अब फिर हो किन्तु वह नहीं होती आप दुःखी हो जाते हैं। यह दुःख कहाँ से आया? आपके मन ने भूत को दुहराने का प्रयास किया। भूत माने तो आप जानते ही हैं।- जो बीत गया। कई लोगों को निद्रा में, तन्द्रा मे भूत-प्रेत का दर्शन होता है। |
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14:19, 3 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 3
अब आपको संकल्प की बात सुनाता हूँ। सम्यक्त्व की कल्पना ही संकल्प है। वक्ता लोग कभी-कभी कथा में कल्पभेद की बात सुनाते हैं। रामकथा को लीजिए। वह महाभारत में दूसरी तरह से, भागवत में दूसरी तरह से, वाल्मीकि रामायण में दूसरी तरह से और अध्यात्म रामायण में दूसरी तरह से है। इधर बंगाल में जो कृत्तिवासी रामायण चलती है, उसमें दूसरी तरह से है। इसी प्रकार जैनों में दूसरी, बौद्धों में दूसरी, कम्बन की दूसरी और रंगनाथन की दूसरी है। बोले भाई, राम तो एक हुए, उनकी कथा में भेद क्यों? इसका समाधान गोस्वामी तुलसीदास जी करते हैं-
कल्प भेद से राम कथा में भेद है। अब इस कल्प पर विचार कीजिए। एक तो इसका अर्थ काल का एक भाग है। काल में युग है, मन्वन्तर है, कल्प है, महाकल्प है। कल्प का दूसरा अर्थ है कवि का संकल्प। एक कवि राम के चरित्र की जिस विशेषता का वर्णन करना चाहता है, उसकी अपने मन में कल्पना करता है। भगवान के लिए की हुई कोई भी कल्पना मिथ्या नहीं होती। काल अनादि है, अनन्त है और भगवान सर्वात्मा हैं। किसी के मन में ईश्वर सम्बन्धी कोई कल्पना आती है तो वह कहाँ से आती है? अवश्य ही सर्वत्मा भगवान ने कभी-न-कभी वैसा चरित किया होगा, तभी वह कल्पनाशील कवि के मन में प्रकट होती है। नह्यसंन्यस्त-संकल्पः हम अच्छाई की कल्पना तो करते ही रहते है, कोई-कोई कल्पना करते-करते जिद्दी भी हो जाते हैं किन्तु बुद्धेः फलनाग्रहम् यदि भगवान ने आपको बुद्धि दी है तो आप जिद्दी मत बनो। जिद्दी होना बुद्धिमान की पहचान नहीं। तो, संकल्प की बात पर आइये। कोई पिछली बात आपको बहुत अच्छी लगती है और आपके मन में संकल्प होता है कि वैसी ही अब फिर हो किन्तु वह नहीं होती आप दुःखी हो जाते हैं। यह दुःख कहाँ से आया? आपके मन ने भूत को दुहराने का प्रयास किया। भूत माने तो आप जानते ही हैं।- जो बीत गया। कई लोगों को निद्रा में, तन्द्रा मे भूत-प्रेत का दर्शन होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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