गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 12
सब भगवान का स्वरूप है। श्रीमद्भागवत भी यही प्रकट करता है कि देखो बालक ब्रह्मरूप है। श्रीकृष्ण ही ग्वालबाल बन गये। बछड़े भी कृष्ण, ग्वाले भी कृष्ण, उनके छीके भी कृष्ण, उनके कपड़े भी कृष्ण, उनकी लठिया भी कृष्ण, उनका खाना-पीना भी कृष्ण अर्थात सबके रूप में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं। आप जब यह श्रवण करेंगे तब भगवान में भक्ति होगी। सारे श्रीमद्भागवत के श्रवण का संकल्प यही है- यथा हरौ भगवति नृणां भक्तिर्भविष्यति। मन में यह संकल्प करो कि सर्वात्मा भगवान में हमारी भक्ति होवे। हम भक्ति किस रूप में कर रहे हैं, इसका ध्यान न रखकर हमारे हृदय में भक्ति है कि नहीं, यह देखने की आवश्यकता है। एक तो हम किसी लाल से, काले से, पीले से, नाटे से, लम्बे से, मोटे से, दुबले से भक्ति न करें। यह देखें कि हमारे सामने जो भी है भगवान का स्वरूप है और हम भक्तिपूर्वक अनुभव करें कि प्रभु, तुम यह रूप धारण करके आये हो। सन्त नामदेव की रोटी कुत्ता ले गया और घी लेकर यह कहते हुए उसके पीछे दौड़े कि प्रभु चुपड़ लेने दो। उनको कुत्ते के रूप में ईश्वर दिखाई पड़ा। तो हमारा ईश्वर यह है- ‘देख मौत का रूप धरे, मैं नहीं डरूँगा तुमसे नाथ।’ भगवान मृत्यु का रूप भी धारण करके आवें तो उनके प्रति भक्ति बनी रहे। और, हम समझते रहें कि वे तो हमारे मित्र ही हैं। एक सज्जन सुनाया करते थे कि एक बार दो मित्र कहीं यात्रा कर रहे थे। रात का समय था और वे बहुत बीहड जंगल में भटक गये। उन्होंने आपस में परामर्श किया कि हममें से एक सोवे और एक जागे। तो एक सो गया और दूसरा जागता हुआ बैठ गया। थोड़ी देर में वह क्या देखता है कि एक साँप वही रुक गया और बोला कि हमको इसका रक्त चाहिए, इसने हमको मारा है, हमारा खून बहाया है, हम इसका खून बहावेंगे। मित्र ने कहा कि तुमको खून ही चाहिए, तो इसको छूओ मत। उसने अपनी जेब से चाकू निकाला और मित्र के शरीर में थोडा-सा घाव करके रक्त निकाला और पत्ते पर साँप सामने रखकर बोला कि लो तुम्हें खून चाहिए था तो लेकर लौट आओ। मित्र बिल्कुल आँख बन्द किये पडा रहा। जब वह उठा, तब उसने पूछा कि क्यों भाई, जब मैंने तुम्हारे शरीर में चाकू लगाया तो कैसा लगा? उसने कहा कि मैंने आँख खोलकरर देखा कि तुम हो, तुम्हारे हाथ में चाकू है तो मैंने सोचा कि मेरा अहित होने वाला नहीं, कुछ-न-कुछ हित ही होगा। फिर मैंने आँख बन्द कर ली और मैं सो गया। सारी बात उसको मालूम थी। यह हुई एक मित्र की मित्र पर विश्वास की बात। किन्तु इससे यह तात्पर्य निकलता है कि जब ईश्वर जैसा मित्र हमें मिला है, तब हमको प्रत्येक परिस्थिति में उस पर भरोसा रखना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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