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− | मैंने कहीं पढ़ा था कि | + | मैंने कहीं पढ़ा था कि दम्पति पानी के जहाज में यात्रा कर रहे थे। मार्ग में बड़ा भारी तूफान आया। [[पत्नी]] को डर लगा किन्तु [[पति]] बिल्कुल नहीं डरे और अपना काम करते रहे। पत्नी ने पूछा कि इतना बड़ा तूफान आया है, जहाज ऊपर-नीचे हो रहा है, लेकिन तुमको डर नहीं लगता? पति चुपचाप उठा। उसने अपनी जेब-से पिस्तौल निकाली और पत्नी की छाती पर लगाता हुआ बोला कि तुमको इससे डर लगता है? पत्नी बोली- नहीं, पिस्तौल क्या करेगा? यह तो तुम्हारे हाथ में है। तब पति बोला कि जब मेरे हाथ में पिस्तौल देखकर तुमको डर नहीं लगता। तो ईश्वर के हाथ में तूफान देखकर क्यों लग रहा है? वह भी तो हमारा मित्र है, हितैषी है। जब उसके हाथ में तूफान है तो हमको डरने की क्या आवश्यकता है? |
− | तो भाई, ईश्वर की आराधना और | + | तो भाई, ईश्वर की आराधना और उससे प्रेम इस प्रकार करो कि सब कुछ सर्वात्मा परमेश्वर का स्वरूप है। उसके प्रति हमारी [[भक्ति]] और प्रीति बनी रहे। इसीलिए श्रीमद्भागवत का कहना है- |
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− | + | '''यस्यां वै श्रूयमाणायां कृष्णे परमपूरुषे।''' | |
− | + | '''भक्तिरुत्पद्यते पुंसः शोकमोहभयापहा।।'''<ref>भा. 1.7.7</ref></poem> | |
− | आप | + | आप भगवान का चरित्र श्रवण कीजिये। संस्कृत में श्रूयमाणानाम् का अर्थ है श्रवणसमकालम् अर्थात सुनते समय ही। श्रीमद्भागवत के एक-एक शब्द ज्यों-ज्यों आपके कान में त्यों-त्यों आपके हृदय में [[भक्ति]] प्रकट होगी और जब भक्ति होगी तो तीन चीजें मिट जायेंगी। जब आपकी आसक्ति का मुँह कान के रास्ते मोड़ दिया जायेगा और भगवत्कथा आपके कान में पड़ेगी और हृदय में [[श्रीकृष्ण]] का प्रेम उदय होगा तो तत्काल तीन बातें आपके जीवन में नहीं रहेंगी। एक तो आपके मन में जो पिछली बातों के लिए शोक होता है- हमारा यह चला गया, हमारे पास यह नहीं रहा, उसका निवारण हो जायेगा। पीछे की जो बातें है, वह अच्छी हों तो भी आपको तकलीफ़ देती है कि अब वे नहीं और बुरी क्यों किया? भूत की बातों को अधिक स्मरण करना ही शोक है। शोक भूतवृत्ति होता है। आप पिछली बातों की याद कर-करके शोकग्रस्त हो जाते हैं। किन्तु जब भगवान की याद आयेगी तो वह शोक मिट जायेगा। दूसरी यह कि आप भविष्य की बातें सोच-सोचकर उनके लिए भयभित हो जाते हैं। अच्छी बात की कल्पना करें तब भी उसमें विघ्न न पड़ जाये यह भय ही है। और बुरी बातों की कल्पना करें तब तो फिर कहना ही क्या है! |
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17:13, 21 दिसम्बर 2017 का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 12
मैंने कहीं पढ़ा था कि दम्पति पानी के जहाज में यात्रा कर रहे थे। मार्ग में बड़ा भारी तूफान आया। पत्नी को डर लगा किन्तु पति बिल्कुल नहीं डरे और अपना काम करते रहे। पत्नी ने पूछा कि इतना बड़ा तूफान आया है, जहाज ऊपर-नीचे हो रहा है, लेकिन तुमको डर नहीं लगता? पति चुपचाप उठा। उसने अपनी जेब-से पिस्तौल निकाली और पत्नी की छाती पर लगाता हुआ बोला कि तुमको इससे डर लगता है? पत्नी बोली- नहीं, पिस्तौल क्या करेगा? यह तो तुम्हारे हाथ में है। तब पति बोला कि जब मेरे हाथ में पिस्तौल देखकर तुमको डर नहीं लगता। तो ईश्वर के हाथ में तूफान देखकर क्यों लग रहा है? वह भी तो हमारा मित्र है, हितैषी है। जब उसके हाथ में तूफान है तो हमको डरने की क्या आवश्यकता है? तो भाई, ईश्वर की आराधना और उससे प्रेम इस प्रकार करो कि सब कुछ सर्वात्मा परमेश्वर का स्वरूप है। उसके प्रति हमारी भक्ति और प्रीति बनी रहे। इसीलिए श्रीमद्भागवत का कहना है- यस्यां वै श्रूयमाणायां कृष्णे परमपूरुषे। आप भगवान का चरित्र श्रवण कीजिये। संस्कृत में श्रूयमाणानाम् का अर्थ है श्रवणसमकालम् अर्थात सुनते समय ही। श्रीमद्भागवत के एक-एक शब्द ज्यों-ज्यों आपके कान में त्यों-त्यों आपके हृदय में भक्ति प्रकट होगी और जब भक्ति होगी तो तीन चीजें मिट जायेंगी। जब आपकी आसक्ति का मुँह कान के रास्ते मोड़ दिया जायेगा और भगवत्कथा आपके कान में पड़ेगी और हृदय में श्रीकृष्ण का प्रेम उदय होगा तो तत्काल तीन बातें आपके जीवन में नहीं रहेंगी। एक तो आपके मन में जो पिछली बातों के लिए शोक होता है- हमारा यह चला गया, हमारे पास यह नहीं रहा, उसका निवारण हो जायेगा। पीछे की जो बातें है, वह अच्छी हों तो भी आपको तकलीफ़ देती है कि अब वे नहीं और बुरी क्यों किया? भूत की बातों को अधिक स्मरण करना ही शोक है। शोक भूतवृत्ति होता है। आप पिछली बातों की याद कर-करके शोकग्रस्त हो जाते हैं। किन्तु जब भगवान की याद आयेगी तो वह शोक मिट जायेगा। दूसरी यह कि आप भविष्य की बातें सोच-सोचकर उनके लिए भयभित हो जाते हैं। अच्छी बात की कल्पना करें तब भी उसमें विघ्न न पड़ जाये यह भय ही है। और बुरी बातों की कल्पना करें तब तो फिर कहना ही क्या है! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 1.7.7
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