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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-2 : अध्याय 5'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''भाग-2 : अध्याय 5'''</div> | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 7'''</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''प्रवचन : 7'''</div> | ||
− | ब्राह्म मुहूर्त में उठकर धन और धर्म का चिन्तन करना चाहिए। आज क्या व्यापार करना है, क्या नहीं करना और ‘कायक्लेशांश्र्व’-हमारे शरीर में क्या तकलीफ होती है, तथा क्या खाने और क्या करने से नहीं होती, यह बात सबेरे सोच लेना चाहिए। इसी तरह आज हमको क्या धर्म करना है और कौन अच्छे-अच्छे काम करने हैं-यह सब भी प्रात: काल सोच लेना चाहिए। अच्छा काम करना, शरीर के अनुकूल भोजन करना, रोग के दुःख के हेतुओं से परहेज करना और आरोग्य के साधनों को सेवन करना, सकाम भाव नहीं। शरीर ठीक रहने पर सबका सब ठीक रहेगा- | + | ब्राह्म मुहूर्त में उठकर धन और [[धर्म]] का चिन्तन करना चाहिए। आज क्या व्यापार करना है, क्या नहीं करना और ‘कायक्लेशांश्र्व’- हमारे शरीर में क्या तकलीफ होती है, तथा क्या खाने और क्या करने से नहीं होती, यह बात सबेरे सोच लेना चाहिए। इसी तरह आज हमको क्या धर्म करना है और कौन अच्छे-अच्छे काम करने हैं- यह सब भी प्रात: काल सोच लेना चाहिए। अच्छा काम करना, शरीर के अनुकूल भोजन करना, रोग के दुःख के हेतुओं से परहेज करना और आरोग्य के साधनों को सेवन करना, सकाम भाव नहीं। शरीर ठीक रहने पर सबका सब ठीक रहेगा- |
− | <poem style="text-align:center;">''' | + | <poem style="text-align:center;">'''‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।'''</poem> |
− | मनुष्य का वशी होना आवश्यक है। केवल माला फेरने का नाम सर्वोत्तम जीवन नहीं। आप लोग बुरा मत मानना। माला फेरने वाले अवश्य फेरें। बहुत अच्छा है माला फेरना कपड़े भी अंट संट पहनते हों तो पहनें किन्तु एक आध्यामिक नागरिक का जो स्वरूप होता है, उसका विस्मरण नहीं होना चाहिए। शान्तचित्त से बैठें और जो काम होना है, उसको मन में डालें तथा मन को परमात्मा की प्रेरणा में डाल दें। | + | मनुष्य का वशी होना आवश्यक है। केवल माला फेरने का नाम सर्वोत्तम जीवन नहीं। आप लोग बुरा मत मानना। माला फेरने वाले अवश्य फेरें। बहुत अच्छा है माला फेरना कपड़े भी अंट संट पहनते हों तो पहनें किन्तु एक आध्यामिक नागरिक का जो स्वरूप होता है, उसका विस्मरण नहीं होना चाहिए। शान्तचित्त से बैठें और जो काम होना है, उसको मन में डालें तथा मन को परमात्मा की प्रेरणा में डाल दें। अर्थात कर्तव्य को मन में और मन को परमात्मा में न्यस्त कर दें। न्यस्त शब्द का मूल अर्थ धरोहर रखना होता है। आजकल ट्रस्टों का नाम न्यास रखते हैं। कबीरदास इसे छोड़ देने, रख देने के अर्थ में बोलते हैं- |
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− | + | '''दास कबीर जतन सों ओढ़ी''' | |
− | + | '''ज्यों की त्यों धरि दीनि चदरिया।'''</poem> | |
− | मतलब यह है कि जीवन का भार अपने ऊपर न लेकर जब परमात्मा पर छोड़ देंगे तो वह बहुत बढ़िया चलेगा और आपको सन्तोष होगा कि आपने अपना जीवन सक्त हाथों में समर्पित कर दिया है। ‘मनसा संन्यस्य’- | + | मतलब यह है कि जीवन का भार अपने ऊपर न लेकर जब परमात्मा पर छोड़ देंगे तो वह बहुत बढ़िया चलेगा और आपको सन्तोष होगा कि आपने अपना जीवन सक्त हाथों में समर्पित कर दिया है। ‘मनसा संन्यस्य’- अर्थात मन के साथ-साथ अपने समग्र जीवन को परमात्मा में रख दो और मन से, संकल्प से जीवन के जो बोझ हैं, उनके अपने को छुड़ा लो। फिर जो सहज भाव से होता है होने दो। |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 263]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=गीता दर्शन -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 263]] | ||
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15:03, 21 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-2 : अध्याय 5
प्रवचन : 7
ब्राह्म मुहूर्त में उठकर धन और धर्म का चिन्तन करना चाहिए। आज क्या व्यापार करना है, क्या नहीं करना और ‘कायक्लेशांश्र्व’- हमारे शरीर में क्या तकलीफ होती है, तथा क्या खाने और क्या करने से नहीं होती, यह बात सबेरे सोच लेना चाहिए। इसी तरह आज हमको क्या धर्म करना है और कौन अच्छे-अच्छे काम करने हैं- यह सब भी प्रात: काल सोच लेना चाहिए। अच्छा काम करना, शरीर के अनुकूल भोजन करना, रोग के दुःख के हेतुओं से परहेज करना और आरोग्य के साधनों को सेवन करना, सकाम भाव नहीं। शरीर ठीक रहने पर सबका सब ठीक रहेगा- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। मनुष्य का वशी होना आवश्यक है। केवल माला फेरने का नाम सर्वोत्तम जीवन नहीं। आप लोग बुरा मत मानना। माला फेरने वाले अवश्य फेरें। बहुत अच्छा है माला फेरना कपड़े भी अंट संट पहनते हों तो पहनें किन्तु एक आध्यामिक नागरिक का जो स्वरूप होता है, उसका विस्मरण नहीं होना चाहिए। शान्तचित्त से बैठें और जो काम होना है, उसको मन में डालें तथा मन को परमात्मा की प्रेरणा में डाल दें। अर्थात कर्तव्य को मन में और मन को परमात्मा में न्यस्त कर दें। न्यस्त शब्द का मूल अर्थ धरोहर रखना होता है। आजकल ट्रस्टों का नाम न्यास रखते हैं। कबीरदास इसे छोड़ देने, रख देने के अर्थ में बोलते हैं- दास कबीर जतन सों ओढ़ी मतलब यह है कि जीवन का भार अपने ऊपर न लेकर जब परमात्मा पर छोड़ देंगे तो वह बहुत बढ़िया चलेगा और आपको सन्तोष होगा कि आपने अपना जीवन सक्त हाथों में समर्पित कर दिया है। ‘मनसा संन्यस्य’- अर्थात मन के साथ-साथ अपने समग्र जीवन को परमात्मा में रख दो और मन से, संकल्प से जीवन के जो बोझ हैं, उनके अपने को छुड़ा लो। फिर जो सहज भाव से होता है होने दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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