गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 4
नैयायिक लोग जीत गये और वेदान्ती हार गये। परन्तु राजा था वेदान्ती। उसने कहा अच्छा नैयायिक जी आप जीत गये। मिट्टी और घड़ा बिलकुल अलग-अलग होते हैं। अब हमारे देश में जितने घड़े बने हों वे सब आपको इनाम के रूम में दिये जाते हैं, ले जाइये। पर मिट्टी नहीं ले जा सकते। मिट्टी हमारी वापिस कर दीजिये और घड़ा ले जाइये। मिट्टी के सिवाय घड़ा नाम की और चीज होगी क्या? एक व्यापकता वह होती है कि यह जो विश्व बना हुआ है यह किस उपादान से, किस मसाले से, किस मैटर से बना हुआ है? यह जो मसाला, जो सामग्री है, वह इसमें व्याप्त है। तीसरी व्यापकता यह होती है जैसे आकाश की नीलिमा में आकाश व्यापक है। नीलिमा नाम की तो कोई वस्तु ही नहीं है। यह तो हमारी आँख समूचे आकाश को ग्रहण नहीं कर सकती, इसलिए आकाश के अग्रहण से नीलिमा दिखायी पड़ती है। हम अपनी आँखों से पूरे आकाश को नहीं देख सकते-हमारी आँखों की जो असमर्थता है उससे यह नीलिमा दिखायी पड़ती है। यह जो नीलिमा में आकाश की व्यापकता है, वह मिथ्या में सत्य की व्यापकता है और घड़े में जो मृत्तिका की व्यापकता है वह कार्य में कारण की व्यापकता है। और लोहे के गोले में अग्नि की जो व्यापकता है वह दूसरे में दूसरे की व्यापकता है। परमात्मा की व्यापकता विश्व में कैसी है? जो बालक-कक्षा का होगा वह लोहे के गोले में अग्नि की व्यापकता के समान बतायेगा-जो उससे अधिक उत्कृष्ट बुद्धिमान होगा वह घड़े में मृत्तिका के समान कहेगा और जो उससे भी अधिक ब्रह्मतत्त्व को आत्मत्वेन अनुभव करने वाला होगा उसे आकाश में नीलिमा के समान यह प्रपंच व्याप्त मालूम पड़ेगा। और उसमें व्यापक जो है वह आत्मतत्त्व है। ‘व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः’। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण-कोई चार दिशा बोलते हैं-कोई आठ दिशा बोलते हैं-चारों कोनों को भी लेते हैं। कोई दस दिशा बोल लेते हैं-ऊपर और नीचे। दोनों को और जोड़ देते हैं। तो दिक् शब्द का अर्थ दिशा होता है। सर्वत्र एक ही परमात्मा भरपूर है। ‘दृष्टाद्धतं रूपमुग्रं तवेदं, लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्’। आपके इस उग्र रूप को देखकर तीनों लोक व्यथित हो रहे हैं। ऐसा मैं देख रहा हूँ। महात्मा जी आप ऐसा रूप क्यों दिख रहे हैं-जिससे सबको व्यथा पहुँचे। संस्कृत में आत्मा शब्द का एक अर्थ पेट भी होता है। ‘महान आत्मा उदरं यस्य’-जिसका पेट बड़ा हो उसको महात्मा कहेंगे। देखो यह लक्षण मेरे ऊपर तो पूरी तरह लागू होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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