गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 1
आपस में लड़ते हैं वसुदेवनन्दन हैं कि नन्दनन्दन हैं। इसके लिए सम्प्रदायों का शास्त्रार्थ है। बल्लभ-सम्प्रदाय और चैतन्य महाप्रभु का सम्प्रदाय - नन्दनन्दन ज्यादा मानते हैं और रामानुज सम्प्रदाय में वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को मानते हैं। जिसके बाप के बारे में लड़ाई, माँ के बारे में लड़ाई, ‘न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवाः।’ बड़े-बड़े देवताओं को भी यह पता नहीं कि तुम्हारा यह जो प्राकट्य है - जो अभिव्यक्ति है, यह क्या है? किसी को मालूम नहीं है। तुम्हीं तुमको जानते हो। आठ श्लोकों में तो प्रश्न है। तुम स्वयं अपने आपको जानते हो। हमें बता दो कि हम किस-किस रूप में तुम्हारा चिन्तन करें। यह उपासना नहीं है, भक्ति नहीं है। हम अपने हृदय में किस-किस रूप में तुम्हारा चिन्तन करें। पशु, पक्षी, पेड़, पौधा सबके रूप में अपने को श्रीकृष्ण बताते हैं। ‘ऐष तूद्देशतः प्रोक्तः’ वह तो केवल नाममात्र है। उसका मतलब यह है कि सब भगवान का स्वरूप है। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज