गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 5
अहं सर्वस्य प्रभवः मत्तः सर्वं प्रवर्तते। अहं सर्वस्य प्रभवः - यह तो योग और मत्तः सर्वं प्रवर्तते - यह है विभूति, सबको चलाने वाला। बिजली का विश्व में व्यापक होना यह योग है और पावर हाउस में प्रकट होना यह विभूति है। और पावर हाउस में बिजली का होना योग है - बल्ब और पंखे में, हीटर में, रेफ्रिजरेटर में प्रकट होना यह उसकी विभूति है। अहं सर्वस्य प्रभवः - सर्वस्य = जो कुछ गतिशील है उसका। सर्व शब्द का अर्थ गतिशील होता है। सृ धातु से ही सर्व शब्द बना है - जो भी बदल रहा है दुनिया में, जो भी अनेक रूप में दिखायी पड़ रहा है - जो भी परिवर्तनशील है, जो भी ज्ञान का विषय है - सबका प्रभव-सत्ता, मूल सत्ता, सर्वोपरि सत्ता मैं हूँ और सबका प्रेरक भी मैं हूँ। इति मत्वा बुधा भवन्ति। जब इस बात को जान लेते हैं तब वे ज्ञानी हो जाते हैं। और बुधा इति मत्वा मां भजन्ते। जो ज्ञानी पुरुष हैं वे ये बात जानकर मेरा भजन करते हैं। और इति मत्वा बुधा भवन्ति। जो ऐसा हमको जान लेते हैं वे ज्ञानी हो जाते हैं। ज्ञानी का लक्षण क्या है? उनकी पहचान है - माँ भजन्ते - जहाँ देखते है - ज्ञानी पुरुष को, नजर ही भगवान पर होती है - आप ऐसे समझ सकते हैं। यहाँ सब स्त्री बैठी हैं। लेकिन यदि आपकी बेटी यहाँ बैठी हो तो आप उसको स्त्री नहीं समझेंगे। बेटी समझेंगे। माँ को स्त्री नहीं समझेंगे। उसमें आपका भाव, आपका संस्कार जुड़ गया। उसमें स्त्रीत्व मात्र ही नहीं है। उसमें पुत्रित्व है, उसमें मातृत्व है, उसमें पत्नीत्व है। वह कहाँ से आ गया? आपके हृदय में-से ही निकलकर गया। स्त्रीत्व तो ईश्वर से और मातृत्व, पत्नीत्व, पुत्रित्व गया है आपके हृदस में-से। तो चीज जुड़ गयी और आप जब देखेंगे अपने हृदय का भाव, आप स्त्री को नहीं देखेंगे। यह जो बुध है, इसके विषय में कुछ समझना है - बुध माने संसार के संस्कार से मुक्त बुद्धिवाले बुध है - ज्यों-की-त्यों बुध है। बुध सोम का पुत्र है; अतः बुध में सोम का सोमत्व - अमृत आ गया और आनन्द का पुत्र जो बुध है, वह केवल ज्ञान का पुत्र नहीं है - आनन्द का पुत्र है। हम सच्चिदानन्द के पुत्र हैं। हमारा जीवन सत् का पुत्र है। हमारा ज्ञान चित का पुत्र है। हमारा रस आनन्द का पुत्र है। हम सच्चिदानन्द के पुत्र हैं और आत्मा वै पुत्र नामासि। हम सच्चिदानन्द हैं। भजन्ते भावसमन्विताः। भाव यह है कि जो आनन्द से भरपूर है, जिसके जन्म-मरण का कोई भय नहीं है। और भाव से भगवान में जुड़ गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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