गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 2
सीताजी ने कहा हनुमानजी किसको दण्ड देंगे? क्या मैं अपराधिनी नहीं हूँ? जब रामचन्द्र मृग के पीछे-पीछे दौड़कर गये तो मैंने ही तो भेजा था - क्या मेरा अपराध नहीं था? जब लक्ष्मणजी उनकी मदद के लिए नहीं जा रहे थे तब मैंने उनको जो दुर्वचन कहे - उसमें क्या मेरा अपराध नहीं था? रावण के आने पर मैंने लक्ष्मण-रेखा भंग करके बाहर जाकर भिक्षा दी, उसमें क्या अपराध नहीं था? ऐसा संसार में कौन है, जिससे अपराध नहीं होता है - छाती ठोंककर कहे। ईसा ने कहा - जिसने कभी चोरी न की हो, जिसने कभी व्यभिचार न किया हो वह इस चोर को और व्यभिचारी को दण्ड दे। क्षमा ईश्वर की दी हुई सम्पदा है हमारे अन्तःकरण के लिए। उसका सदुपयोग करना चाहिए। क्षमा सत्यं दमः शमः - सत्य के अनुसार जीवन व्यतीत करना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, अपने मन को शान्त रखना, हमारे अन्तःकरण के लिए क्षमा। सत्य आत्मा में तीन चीज बुद्धि, ज्ञान और असंमोह और अन्तःकरण में चार वस्तु क्षमा सत्यं दमः शमः। सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च - यह हमारे व्यवहार के लिए भगवान ने छह पदार्थ दिये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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