गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 9
जल के रूप में भगवान की आराधना। अग्नि के रूप में भगवान की आराधना, वायु के रूप में भगवान की आराधना। सूर्य, चन्द्रमा के रूप में, अपने प्राणों के रूप में, अपनी साँस के रूप में भगवान की आराधना। आकाश के रूप में भगवान की आराधना। पेड़-पौधे के रूप में – अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां – पीपल के रूप में आराधना। हंस आदि पक्षियों के रूप में भगवान की आराधना। गाय आदि पशुओं के रूप में भगवान की आराधना। मछली, कछुवा, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम के रूप में ईश्वर की आराधना। यह जो ऐसा मानते हैं कि ईश्वर साकार हो ही नहीं सकता, उनके सिद्धान्त से यह वेदशास्त्र का सिद्धान्त विलक्षण है। सबके रूप में वही है। स्वकर्मणा तमभ्यच्र्य सिद्धिं विन्दति मानवः। अपने कर्म के द्वारा उसकी आराधना करो। माता के रूप में, पिता के रूप में परमेश्वर है। माता, पिता परमेश्वर का प्रतीक नहीं, परमेश्वर रूप है। शिवलिंग जगत् के कारण का प्रतीक नहीं स्वयं जगत् कारण परमेश्वर ही हे। शालिग्राम प्रतीक नहीं है। यह प्रतीक पूजा नहीं है। यह साक्षात् परमेश्वर की पूजा है। माता की पूजा, पिता की पूजा, गुरु की पूजा, ब्राह्मण की पूजा, विद्वान्-की पूजा, बल्लभाचार्य तो अपने पुत्रों की पूजा करते थे। ये साक्षात् भगवान हैं। परमहंस राकृष्ण अपनी पत्नी की पूजा करते थे। ये साक्षात् परमेश्वर हैं। हमारे एक वर्ष की कुमारी, दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की कुमारी, पाँच वर्ष का बटुक, आठ वर्ष का बटुक, इनकी पूजा होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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