गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 8
अविनाशी परमात्मा को समझाने के लिए यह प्रक्रिया स्वीकार की गयी। एक बार सुन लेंगे तो आपके संस्कार में यह बात रहेगी। जो परमात्मा की प्राप्ति है यह चतुर्युकी या सहस्र चतुर्युगी या ब्रह्मा की आयु, विष्णु की आयु, शिव की आयु, निराकार संकल्प इसका नाम परमात्मा की प्राप्ति नहीं है। परमात्मा की प्राप्ति, जहाँ काल है ही नहीं, काल की कलना जहाँ नहीं है, संकल्प जहाँ नहीं है - उस परमात्मा की प्राप्ति होती है। यहाँ ब्रह्मा की आयु का जो वर्णन आया, यह वैराग्य के लिए है। यदि आप अविनाशी वस्तु को प्राप्त करना चाहते हें तो यह ब्रह्माजी के मिनट, दिन और उनकी आयु में जो रहने वाली चीज है, उसको मत चाहिए। अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे । बस, यह दिन-रात का चक्कर - चाक घूम रहा है। पहिये का चाक घूम रहा है - चक्र है। रात हुई तो सब अव्यकत में लीन हो गया। एक दिन ब्रह्मा का तो सब निकल आया। इसका एक अर्थ और है। आपके सोने में जो चीज नहीं मालूम पड़ती है या नहीं रहती है, वह आपका मन है और आपके जागने से जो चीज रहती है वह भी आपका मन है। वस्तु को स्पर्श मत कीजिये, आपकी जाति, आपका मजहब, आपकी भाषा - जिसमें अभिनिविष्ट होकर आप दूसरों का सिर काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप जब सोते हैं, तब क्या आपकी भाषा रहती है? कौन-सी भाषा रहती है? माँ के पेट में थे तब आपकी कौन-सी भाषा थी? आकपी कौन-सी जाति है? कौन-सा मजहब रहता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज