गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 2
माने परमात्मा तो सुलभ है, तस्याहं सुलभः पार्थ। महात्मा दुर्लभ है। अब स्मरण की बात देखो- अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् । मृत्यु के समय परमात्मा की पहचान कैसे हो? इसका उपाय यह है कि पहले से पहचानकर रखो कि सब परमात्मा हैं। तब आपको मृत्यु के समय कोई घबराहट नहीं होगी। गीता में आप पढ़ते हैं कि मृत्युःसव्रहरश्चाहम् - मृत्यु के रूप में परमात्मा को पहचान लो तो सत्-असत् अथवा मृत्यु, अमृत कहीं भी तुम्हें कोई चिन्ता नहीं है, कोई घबराहट नहीं है, कोई अवनति नहीं, कोई पतन नहीं है। सर्वत्र परमेश्वर, परमेश्वर ही परमेश्वर! ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्ति |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लोक 8.5
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