गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-11 : अध्याय 14
प्रवचन : 4
पहले ज्ञान की योग्यता जब आयेगी तब सूक्ष्म वस्तु का ज्ञान होगा। और योग्यता सम्पादन नहीं करेंगे तो सूक्ष्म वस्तु का ज्ञान नहीं होगा। वह अमृत जो स्वर्ग में नहीं होता वह अमृत आपको सब जगह भरपूर मिलेगा-छल-छल-छलकता हुआ-झिलमिल करता हुआ। जगमग जगमगाता हुआ- वह अमृत आपको आपके जीवन की प्रत्येक स्थिति में मिलता रहेगा-यदि उसको एक बार पहचान लें। उस अमृत का वर्णन आगे प्रारम्भ होता है। उसके सम्बन्ध में कोई प्रश्न हो तो सुना देंगे। प्रश्न: एकान्त स्थान का सेवन तथा जनसमाज में अप्रीति- ये दोनों गुण तो केवल संन्यास में संभव है। फिर लोक-संग्रह और कर्मयोग कैसे सम्भव होगा? उत्तर: हमको तो ऐसा लगता है कि जब पति-पत्नी मिलते हैं तो उसको एकान्त मिल जाता है कि नहीं? माँ-बेटे मिलते हैं तो एकान्त मिल जाता है कि नहीं? और परमात्मा की प्राप्ति के लिए एकान्त-माने जंगल नहीं है। एकान्त माने गुफा नहीं है। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अपना जो निर्मल हृदय है, वही सबसे बड़ा एकान्त है। जैसे आप माँ-बाप से मिलते-जुलते हैं- दूसरे की ओर नहीं देखते हैं। पत्नी-पति मिलते हैं। गुरु-शिष्य मिलते हैं- तो जीवन में एकान्त तो हो ही जाता है। एकान्त माने एक में ताप्तर्य जैसे वेदान्त है और लौकिक रूप से भी यदि आप भीड़-भाड़ में ही रहते हैं तो आप अपने व्यापार के बारे में भी कैसे सोचेंगे? अपने परिवार के बारे में कैसे सोंचेगे? हमारे मनुजी ने कहा है-
सोचना चाहिए कि आज हम क्या-क्या धर्म करेंगे? लोगों की भलाई के लिए कौन-कौन-सा काम करेंगे? संध्या वन्दन का समय कौन होगा? दान का समय कौन-सा होगा? इसका चिन्तन करें। सबेरे सोच लेना चाहिए। कम-से-कम एक दिन की योजना तो बना ही लेनी चाहिए कि आज हमको यह करना है। दूसरी बात ‘धर्मार्थावनुचिन्तयेत्’। अर्थ का भी चिन्तन करे कि आज हमको कमाई के लिए, अपने व्यापार के लिए कौन-कौन-सी बात देखना जरूरी है। कहाँ हानि हो रही है? कहाँ लाभ हो रहा है? हानि को कैसे पूरा करें? लाभ को कैसे बढ़ावेंगे? क्या-क्या नयी योजना करेंगे? यह सारे संकल्प एकान्त में ही किये जाते हैं। भीड़-भाड़ में योजना नहीं बनती है। योजना तो बिलकुल एकान्त स्थल में एकाग्रचित्त में बनती है। तीसरी बात मनुजी ने यह कही कि हमारे शरीर में कष्ट क्या है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 4.92
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