गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 10
श्रीउड़िया बाबाजी महाराज कहते थे, भगवान स्वामी नहीं है। भगवान सेवक है। वह आपकी इतनी सेवा करता है कि यदि आप उस पर ध्यान दें तो आप अपने को उसके सामने शून्य पावेंगे। भगवान की सेवा के सामने-आप समुद्र के सामने, बिन्दु भी नहीं हैं। आपका अभिमान बिल्कुल मिट जायेगा और तब भगवान का जो अपने आपसे प्रेम है, वहीं प्रेम आपके साथ हो जायेगा। यदि आप अलग रहेंगे तो भगवान को भी कुछ अपना-पराया लगेगा और जब आपका अभिमान बिलकुल मिट जायेगा तो भगवान को भी अपना-पराया नहीं लगेगा। आओ, भक्त की पहचान पर थोड़ा ध्यान दो। ‘समः शत्रौ च मित्रे च’-एक शत्रु है और एक मित्र है। आप दोनों के प्रति सम हैं-यह क्या है? सम ज्ञान है कि सम भावना है? कि सम वर्तन है। ज्ञान, भावना और वर्ताव इसके चक्कर में हम नहीं पड़ते हैं। देखो, एक आदमी आपको कभी ठण्डे जल से स्नान कराता है, और एक आदमी गरम पानी से स्नान कराकर मल-मलकर आपके शरीर की मैल छुड़ाता है। आप ठण्डे पानी वाले को मित्र समझते है और गरम पानी वाले को शत्रु समझें तो यह कोई समझदारी की बात नहीं है। मैं सांसदिक शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ। असांसदिक शब्दों का प्रयोग करें तो अच्छा नहीं लगेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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