गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 6
देखो आश्वासन भी देते हैं और धमकाते भी हैं। यदि तुम अपना चित्त मुझमें लगा दोगे या तुम्हारा चित्त मेरा स्वरूप हो जावेगा तो जितनी कठिनाइयाँ तुम्हारे जीवन में आती है, सबको पार कर जाओगे। कोई कठिनाई तुम्हें रोक नहीं सकेगी। ‘अथचेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यसि’-अगर तुम मेरी बात अहंकार के वश होकर नहीं सुनोगे तो नष्ट हो जाओगे-विनष्ट हो जाओगे। यह ग्वालों की भाषा है-बहुत घमण्ड है तुमको, मेरी बात नहीं सुनते हो? जाओ तुम्हारा सत्यानाश हो जाय। आ गया होगा ग्वालापन-घमण्ड करते हो मेरे सामने? इसी से जहाँ भक्त की पहचान बतायी गयी वहाँ- मच्चित्ता मद्रतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्। ‘आत्मभावस्थः’। उनके भाव में आकर मैं खड़ा हो जाता हूँ। और ऐसा मशाल, ज्ञान का दीपक दिखाता हूँ कि वह अज्ञानान्धकार से पार हो जाय। मेरे पास पहुँच जाय। इसको भगवान का बड़ा भारी सौशील्य बोलते हैं। जब कोई उनके पास पहुँचने के लिए चलता है और रास्ते में कहीं अधेरा होता है, तो बेचारा क्या करे? तो भगवान मशालची बनकर आ जाते हैं-भगतजी, इस रास्ते आओ। अब वे पहचानें कि न पहचानें-वह ले जाता है और देखता है वहाँ सिंहासन पर विराजमान-तो कहता है अरे यही तो हमको मशाल दिखा रहे थे। हमको रास्ता बताने वाले यही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.9-11
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