गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-10 : अध्याय 13
प्रवचन : 5
मन बुद्धि को समेटकर श्रीकृष्ण ने ‘चित्त’ कर दिया और आधान और निवेषण दोनों को समेटकर ‘समाधान’ कर दिया।
एक सज्जन ने उड़िया बाबा जी से कहा-महाराज हम पूड़ी नहीं खा सकते। बोले-आधी पूड़ी रोज खा। फिर एक पूड़ी खाना शुरू कर। फिर दो पूड़ी खा लेना। छः पूड़ी कभी मत खाना-ऐसे कहते, आधी पूड़ी खाओ-पच जायगी। अभ्यास हो जायेगा। हमको खीर देखकर कै आती थी। बचपन में मन ऐसा बिगड़ गया था-खीर देखते ही वमन आ जाये। बाबा को जब मालूम हुआ तो उन्होंने मखाने की खीर बनवायी, उसको पिसवा लिया और धीरे-धीरे मैं खाने लगा। फिर चावल की खीर मथवा लिया, वह खाने लगा। फिर खीर खाने लगा, हमारी ग्लानि मिट गयी। यह जो मैं कहता था कि मैं खीर नहीं खा सकता, यह हमारी अशक्ति को, असमर्थता को बाबा ने महीने-दो-महीने में मिटा दिया। यह क्यों बोलते हो कि तुम यह नहीं कर सकते। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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